देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (केयू) के डॉ. बीआर अंबेडकर अध्ययन केंद्र द्वारा “लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर का राष्ट्र निर्माण में योगदान” विषय पर एक दिवसीय विस्तार व्याख्यान का आयोजन किया गया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में केयू के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर राष्ट्र निर्माण की एक चिरकालिक प्रतीक हैं, जो धर्म, न्याय और दूरदर्शी नेतृत्व पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि उनका शासनकाल समावेशी शासन, आध्यात्मिक पुनरुत्थान और जन कल्याण के स्वर्णिम युग का प्रतीक है।
प्रोफेसर सचदेवा ने आगे बताया कि अहिल्याबाई होल्कर ने अपने न्यायपूर्ण प्रशासन, कल्याणकारी पहलों और आध्यात्मिक पुनर्जागरण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, “उन्होंने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया, शिक्षा को बढ़ावा दिया और धर्म को कायम रखा, जिससे समावेशी और प्रबुद्ध नेतृत्व का एक स्थायी मॉडल स्थापित हुआ।”
केयू के रजिस्ट्रार डॉ. वीरेंद्र पाल ने अहिल्याबाई होल्कर की नैतिक नेतृत्व, सामाजिक न्याय और समावेशी शासन की विरासत को आधुनिक भारत के लिए प्रेरणा का निरंतर स्रोत बताया।
मुख्य अतिथि बिहार की सामाजिक चिंतक डॉ. रेशमा प्रसाद ने मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर को भारतीय इतिहास की सबसे बहादुर महिलाओं में से एक बताया, जिनके अद्वितीय नेतृत्व और दूरदर्शिता ने इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ी।
शासकीय महाविद्यालय, बिलासपुर के प्रोफेसर रमेश धारीवाल ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर की शासन व्यवस्था धार्मिक मूल्यों, अच्छे प्रशासन और सेवा की भावना पर आधारित थी।
इस अवसर पर गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. विजय कुमार, आईआईएचएस की प्रिंसिपल प्रोफेसर रीता दलाल, केयू की आंतरिक शिकायत समिति की अध्यक्ष प्रोफेसर सुनीता सिरोहा और केंद्र निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने भी अपने विचार साझा किए।
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