अर्टाबल्लाभा मोहंती एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से उड़िया साहित्य को न केवल समृद्ध किया, बल्कि सामाजिक चेतना को भी जागृत किया। उनकी रचनाएं आज भी उड़िया साहित्य के स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा हैं।
अर्टाबल्लाभा मोहंती का जन्म 30 जुलाई 1887 को ओडिशा के कटक में हुआ था। उनकी शिक्षा एक ऐसे वातावरण में हुई, जहां साहित्य और संस्कृति को विशेष महत्व दिया जाता था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद साहित्यिक और शैक्षणिक क्षेत्र में कदम रखा।
मोहंती न केवल एक लेखक थे, बल्कि एक प्रखर चिंतक और शिक्षाविद् भी थे, जिन्होंने उड़िया भाषा और साहित्य के विकास के लिए काफी प्रयास किए। उन्होंने कविता, निबंध, और व्यंग्य साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों, मानवीय संवेदनाओं, और उड़िया संस्कृति की झलक दिखाई देती है।
मोहंती ने अपने साहित्य के माध्यम से उड़िया समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक सुधार, शिक्षा, और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देने का संदेश प्रमुखता से मिलता है। मोहंती ने उड़िया साहित्य को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान करने में भी योगदान दिया, जिससे यह समकालीन मुद्दों के साथ प्रासंगिक बना रहा।
ब्रिटिश सरकार ने एक शिक्षाविद् और विद्वान के रूप में उनकी सेवाओं की सराहना की और उन्हें 1931 में राय साहिब और 1943 में राय बहादुर की उपाधि दी। इसके अलावा, उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत सरकार ने 1960 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। साथ ही, उन्हें उड़िया साहित्यिक समुदाय से भी कई सम्मान प्राप्त हुए।
रचनाओं के माध्यम से आम जनता के बीच अपनी पहचान बनाने वाले अर्टाबल्लाभा मोहंती का निधन 1969 में हुआ। उनकी मौत के बाद भी उनकी रचनाएं उड़िया साहित्य में जीवित हैं और नई पीढ़ी के लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। उनकी विद्वता, व्यंग्य की गहराई, और सामाजिक दृष्टिकोण ने उन्हें उड़िया साहित्य के इतिहास में अमर बना दिया।