झारखंड में डीजीपी की नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो गया है। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और यूपीएससी के निर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
बुधवार को प्रदेश भाजपा कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मरांडी ने कहा कि जिस आईपीएस को अप्रैल 2025 में रिटायर होना था, उन्हें हेमंत सोरेन की सरकार ने बेहद हड़बड़ी में नई नियमावली लाकर इस पद पर न सिर्फ नियुक्त कर दिया है, बल्कि इसके जरिए उन्हें अप्रैल 2026 तक के लिए एक्सटेंशन भी प्रदान कर दिया है।
मरांडी ने डीजीपी के पद पर नियुक्ति के लिए बनाई गई नियमावली को भी गलत बताया है। उन्होंने कहा कि अधिनियम पारित किए बगैर कार्यकारी आदेश के जरिए इस तरह की नियमावली बनाई ही नहीं जा सकती।
उन्होंने कहा कि सरकार ने जो नियमावली बनाई है, उसका भी पालन नहीं किया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने ‘प्रकाश सिंह बनाम भारतीय संघ’ के 2006 के केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि डीजीपी की नियुक्ति केवल यूपीएससी से अनुशंसित पैनल से ही होनी चाहिए। हेमंत सोरेन की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए यूपीएससी को दरकिनार कर अनुराग गुप्ता को डीजीपी बना दिया है। यूपीएससी की अनुशंसित सूची में उनका नाम नहीं है।
मरांडी ने इसे सीधे तौर पर संविधान और न्याय व्यवस्था पर हमला बताया। उन्होंने कहा, ”हेमंत सोरेन की सरकार ने झारखंड की जनता को धोखे में रखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का खुलेआम उल्लंघन किया है। उसने न सिर्फ संवैधानिक मर्यादाओं को तोड़ा है, बल्कि राज्य की पुलिस व्यवस्था और प्रशासन को अपनी राजनीतिक साजिशों का हथियार बना लिया है।”
भाजपा नेता ने कहा कि आईपीएस अनुराग गुप्ता एक विवादास्पद और दागदार अधिकारी रहे हैं। चुनाव में गड़बड़ी के कारण वह दो साल तक निलंबित रहे। निलंबन समाप्त होने के बाद हेमंत सोरेन की सरकार ने उन्हें कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त कर दिया। पिछले चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के हस्तक्षेप पर उन्हें इस पद से हटा दिया गया था और चुनाव कार्यों से पूरी तरह बाहर रखा गया था। चुनाव खत्म होते ही हेमंत सोरेन की सरकार ने उन्हें इस पद पर फिर से नियुक्त कर दिया।
मरांडी ने कहा कि इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी इस मामले में संघर्ष करेगी।