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दिल्ली हाई कोर्ट ने सीडीएस परीक्षा में पुरुषों के समान ही महिलाओं की भर्ती पर निर्णय लेने को कहा

Delhi High Court asks to take decision on recruitment of women at par with men in CDS exam

नई दिल्ली, 27 अप्रैल । दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा के माध्यम से महिलाओं को पुरुषों के समान भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में महिलाओं को शामिल करने पर आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

यह आदेश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने दिया, जो अधिवक्ता कुश कालरा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिका में सीडीएस परीक्षा के माध्यम से भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए), भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनए) और वायु सेना अकादमी (एएफए) में भर्ती के लिए आवेदन करने से महिलाओं को बाहर रखने की परंपरा को चुनौती दी गई है।

वर्तमान में सीडीएस के जरिये महिलाओं को सिर्फ ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में प्रवेश दिया जाता है जिसका प्रशिक्षण पूरा करने के बाद तीनों सेनाओं में अस्थायी कमीशन मिलता है।

कालरा ने 22 दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन दिया था।

कालरा के वकील ने सरकार द्वारा प्रतिवेदन का जवाब देने तक याचिका को लंबित रखने का अनुरोध किया। अदालत ने कहा कि सरकार को याचिका पर दबाव डाले बिना तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

केंद्र सरकार के स्थायी वकील कीर्तिमान सिंह ने अदालत को बताया कि सशस्त्र बलों में महिलाओं को शामिल करने के लिए धीरे-धीरे कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में प्रगति का उल्लेख किया और आश्वासन दिया कि सीडीएस के लिए भी इसी तरह के कदम उठाए जाएंगे।

अदालत ने अपने निर्देश में केंद्र सरकार को कालरा के प्रतिवेदन पर निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर जवाब देने का आदेश दिया।

कालरा ने तर्क दिया कि अधिसूचना ने अन्यायपूर्ण तरीके से महिलाओं को उनके लिंग के आधार पर कुछ पदों के लिए आवेदन करने से रोका गया है, जो समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है।

कालरा ने तर्क दिया कि महिलाओं को अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद एनडीए में शामिल होने की अनुमति है, जबकि सीडीएस में भेदभावपूर्ण प्रथा जारी है जिससे महिला अधिकारियों के करियर में उन्नति के अवसर बाधित हो रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि प्रमुख भारतीय सशस्त्र बल संस्थानों में योग्य महिला उम्मीदवारों को प्रशिक्षण से बाहर करना संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है, जिसमें भर्ती प्रक्रियाओं में लैंगिक समानता की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

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