September 27, 2024
National

समुद्र के तापमान में वृद्धि से बढ़ा धरती का पारा : डॉ. अनिल जोशी

देहरादून, 29 मई । उत्तराखंड में गर्मी का कहर जारी है। मैदान से लेकर पहाड़ तक सूरज की तपिश से लोगों का हाल बेहाल है। गर्मी के मौसम में पहाड़ों का रुख करने वालों के लिए भी मुसीबत बढ़ी हुई है। पहाड़ों पर भी गर्मी का असर है। हालात ऐसे हैं कि इस साल प्रदेश में पड़ रही गर्मी ने पिछले सालों के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

साल 2012 में मई महीने का अधिकतम तापमान 43.1 डिग्री सेल्सियस रहा था। वहीं, इस साल बुधवार को देहरादून का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। हालांकि, लोगों को गर्मी से राहत मिलने की संभावना भी जताई गई है। देहरादून के मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ. विक्रम सिंह ने बताया कि उत्तराखंड में एक जून से मौसम बदलने की संभावना है। प्रदेश के कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के अधिकांश जनपदों में बारिश की उम्मीद है।

दूसरी तरफ पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी का कहना है कि लगातार बढ़ता तापमान सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, देश के दूसरे हिस्सों में भी महसूस किया जा रहा है। लगातार बढ़ती गर्मी ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है। इसके कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। गर्मी बढ़ने की एक वजह समुद्र के तापमान में वृद्धि है। जिसके कारण अभी आने वाले समय में गर्मी और बढ़ेगी। इसके साथ ही धरती का तापमान भी बढ़ेगा।

उन्होंने बताया कि आमतौर पर समुद्र का तापमान 39 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए, जो अब काफी बढ़ गया है। आज प्रदेश में जो गर्मी आप देख रहे हैं, उसका एक कारण हमारी नदियों और कई जलस्रोतों, पोखरों, तालाबों, गदेरों का सूखना भी है। प्राकृतिक जल स्रोत तापमान को कम करने में काफी सहायक होते हैं और वातावरण को ठंडा बनाने में काफी मदद करते हैं। ठंड के मौसम में बारिश नहीं होने से जंगलों की नमी खत्म हो गई। जिसके कारण वहां तेजी से आग फैली। इसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ा है।

डॉ. जोशी ने कहा कि आज विकास के नाम पर पेड़ों और जंगलों को काटा जा रहा है। उसका नतीजा यह है कि धरती का तापमान बढ़ गया है। जिस तरह से चारधाम यात्रा में श्रद्धालु आ रहे हैं, उससे भी हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। गाड़ियों की बढ़ती भीड़ से भी पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। यदि हमें धरती के तापमान को कम करना है तो उसके लिए सबसे पहले हमें समुद्र के तापमान को कम करना होगा।

Leave feedback about this

  • Service