कुल्लू दशहरा महोत्सव के चौथे दिन आज ऐतिहासिक लाल चंद प्रार्थी कला केंद्र में फिर से रौनक लौट आई। इस दिन का सांस्कृतिक प्रदर्शन कुल्लू घाटी की समृद्ध कलात्मक विरासत और चिरस्थायी परंपराओं को भावभीनी श्रद्धांजलि थी।
इस बीच, कल तीसरी सांस्कृतिक संध्या ने महोत्सव को एक जीवंत संगीतमय उत्सव में बदल दिया।
जिले भर से आए सांस्कृतिक दलों की एक जोशीली लोक नृत्य प्रतियोगिता दिन का मुख्य आकर्षण रही। लयबद्ध पदचाप से लेकर भावपूर्ण संगीत तक, इन प्रस्तुतियों ने कुल्लू के विविध सांस्कृतिक परिदृश्य का सार प्रस्तुत किया। पारंपरिक वेशभूषा, अलंकृत आभूषणों और क्षेत्रीय अलंकरणों से सुसज्जित, प्रतिभागियों ने एक ऐसा मनोरम दृश्य प्रस्तुत किया जिसने दर्शकों को हिमाचली विरासत के हृदय में ले गया।
कुल्लू दशहरा की एकता, संस्कृति और परंपरा को दर्शाने वाले इन प्रदर्शनों ने आगंतुकों और स्थानीय लोगों, दोनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। दिन का समापन तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हुआ, जिसमें उन कलाकारों को सम्मानित किया गया जो घाटी की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखे हुए हैं।
तीसरी सांस्कृतिक संध्या में, प्रसिद्ध गायक अरविंद राजपूत ने अपनी ऊर्जावान प्रस्तुति से मंच पर समां बांध दिया और दर्शकों को बॉलीवुड और पहाड़ी धुनों की लयबद्ध लहर में खींच लिया। ‘ओ मेरे हमसफ़र’, ‘कोई मिल गया’, ‘बचना ऐ हसीनों’ और ‘याद आ रहा है तेरा प्यार’ जैसे हिट गानों पर उनकी प्रस्तुतियों ने दर्शकों को झूमने और उनके साथ गाने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने ‘शिमले नी बसना कसौली नी बसना’ जैसे भावपूर्ण पहाड़ी गीतों से भी दर्शकों के दिलों को छू लिया।