प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में पीएमएलए विशेष अदालत के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने के आदेश को चुनौती देने के करीब एक साल बाद उनके वकील ने दावा किया कि याचिका विचारणीय नहीं है।
न्यायमूर्ति त्रिभुवन दहिया की पीठ के समक्ष हुड्डा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा ने दलील दी कि ईडी की याचिका विचारणीय नहीं है। उन्होंने विस्तार से बताया कि 22 आरोपियों में से केवल चार को ही याचिका में पक्षकार बनाया गया है। उन्होंने कहा, “अगर याचिका स्वीकार कर ली जाती है, तो सभी आरोपी प्रभावित होंगे।” हुड्डा की ओर से अधिवक्ता अर्शदीप सिंह चीमा, प्रदीप सिंह पूनिया और सतीश शर्मा भी पेश हुए।
सुनवाई के दौरान पीठ को यह भी बताया गया कि यह आदेश हुड्डा द्वारा नहीं, बल्कि कुछ अन्य आरोपियों द्वारा दायर एक आवेदन पर पारित किया गया था। हुड्डा ने स्थगन के लिए उक्त आवेदन दायर नहीं किया था। ईडी ने उन्हें एक पक्षकार बनाया, जबकि अन्य सभी आरोपियों को पक्षकार नहीं बनाया।
भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू और ईडी की ओर से विशेष वकील ज़ोहेब हुसैन ने “इस संबंध में निर्देश प्राप्त करने के लिए एक संक्षिप्त समय” मांगा। मामले की अगली सुनवाई अब 28 अक्टूबर को होगी।
अन्य बातों के अलावा, ईडी ने अपनी याचिका में कहा कि यह मामला औद्योगिक भूखंडों के आवंटन से संबंधित है। हुडा के तत्कालीन अध्यक्ष हुड्डा ने आवंटन मानदंडों को अंतिम रूप देने के लिए फाइल को लंबे समय तक अपने पास रखा। उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए आवेदन आमंत्रित करने की 6 जनवरी, 2016 की अंतिम तिथि के बाद 24 जनवरी, 2016 को मानदंड बदल दिए।
इसमें यह भी कहा गया कि भूखंडों का आवंटन प्रस्तावित मानदंडों के अनुसार नहीं किया गया था। समय सीमा बीत जाने के बाद इसमें बदलाव किया गया और गलत तरीके से अपात्र आवेदकों को भूखंड आवंटित कर दिए गए।
ईडी ने अपनी अर्जी में कहा कि पीएमएलए के प्रावधानों के तहत गहन जाँच के बाद फरवरी 2021 में पंचकूला की विशेष अदालत में अभियोजन पक्ष की शिकायत दर्ज की गई थी। अदालत ने फरवरी 2021 में शिकायत का संज्ञान लिया। लेकिन अदालत ने 15 मई के अपने आदेश के तहत पीएमएलए मुकदमे की कार्यवाही “सीबीआई द्वारा अंतिम रिपोर्ट दाखिल होने तक” रोक दी।
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