July 4, 2025
Entertainment

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के ‘बाहुबली रामाधीर सिंह’ से ‘हीरो’ के ‘श्रीकांत माथुर’ तक, हर किरदार में जंचे तिग्मांशु धूलिया

From ‘Baahubali Ramadhir Singh’ of ‘Gangs of Wasseypur’ to ‘Shrikant Mathur’ of ‘Hero’, Tigmanshu Dhulia suits every character

भारतीय सिनेमा में मल्टी टैलेंटेड सितारों का नाम लिया जाए तो तिग्मांशु धूलिया उनमें से हैं, जो टॉप पर दिखते हैं। फिल्म मेकर, डायरेक्टर, लेखक और एक्टर का 3 जुलाई को जन्मदिन है। उन्होंने अपने सिनेमाई जादूगरी से न सिर्फ निर्देशन के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी, बल्कि एक्टिंग और राइटिंग में भी अपनी काबिलियत दिखाई।

चाहे वह ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के खतरनाक ‘रामाधीर सिंह’ हो या ‘हीरो’ के पुलिस अधिकारी ‘श्रीकांत माथुर’, तिग्मांशु ने हर किरदार को इस तरह निभाया कि वह दर्शकों के जेहन में हमेशा के लिए बस गया।

तिग्मांशु धूलिया का सिनेमाई सफर साल 1995 में शुरू हुआ, जब उन्होंने शेखर कपूर की ‘बैंडिट क्वीन’ में कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में काम किया। यह फिल्म न सिर्फ अपनी कहानी के लिए चर्चित रही, बल्कि तिग्मांशु को इंडस्ट्री में पहचान दिलाने का पहला कदम भी बनी।

इसके बाद उन्होंने मणिरत्नम की ‘दिल से’ में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई, जहां उनकी बारीक नजर और कहानी कहने की कला ने सबका ध्यान खींचा। लेकिन, तिग्मांशु का असली जादू तब सामने आया, जब उन्होंने निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म ‘हासिल’ बनाई। इलाहाबाद की पृष्ठभूमि पर बनी साल 2003 में आई फिल्म ने कॉलेज पॉलिटिक्स और प्रेम की उलझनों को इतनी संजीदगी से पेश किया कि यह आज भी सिने प्रेमियों के बीच छाया रहता है।

तिग्मांशु का असली कमाल उनकी बहुमुखी प्रतिभा में है। बतौर निर्देशक उनकी साल 2012 में फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ आई, जिसमें इरफान खान की दमदार एक्टिंग ने कहानी को अमर कर दिया। इस फिल्म ने न सिर्फ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता, बल्कि तिग्मांशु को हिंदी सिनेमा में एक गंभीर और संवेदनशील कहानीकार के रूप में स्थापित किया। उनकी अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में ‘साहेब बीवी और गैंगस्टर’ सीरीज, ‘शाहिद’, और ‘मांझी-द माउंटेन मैन’ शामिल हैं, जिनमें उन्होंने सामाजिक मुद्दों को मनोरंजन के साथ जोड़ने का हुनर दिखाया।

तिग्मांशु सिर्फ निर्देशन तक सीमित नहीं रहे। अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में उनके ‘रामाधीर सिंह’ के किरदार ने दर्शकों को चौंका दिया। वह बाहुबली की निरंकुशता और उनके “बेटा, तुमसे ना हो पाएगा” जैसे डायलॉग आज भी सोशल मीडिया पर छाए रहते हैं। इस किरदार ने तिग्मांशु को एक अभिनेता के रूप में नई पहचान दी। इसके बाद ‘हीरो’ में श्रीकांत माथुर के किरदार में उनकी एक्टिंग उभरकर सामने आई। वह पर्दे पर किसी भी रोल को सहजता से पेश कर लेते हैं।

वेब सीरीज ‘रक्तांचल’ और ‘योर ऑनर’ में भी उनके अभिनय ने दर्शकों को प्रभावित किया।

कहानी कहने की कला में माहिर तिग्मांशु की खासियत है, कहानियों में यथार्थ का रंग। उनकी फिल्में न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि समाज की गहराइयों को भी टटोलती हैं। ‘शाहिद’ में उन्होंने वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता शाहिद आजमी की कहानी को इतनी संवेदनशीलता से पेश किया कि फिल्म दर्शकों के दिलों को छू गई। वहीं, ‘मांझी’ में नवाजुद्दीन सिद्धीकी के किरदार ने एक साधारण इंसान की असाधारण जिद को जीवंत कर दिया। उनकी फिल्मों में किरदारों की गहराई साफ झलकती है।

तिग्मांशु की लेखन शैली भी उतनी ही प्रभावशाली है। ‘दिल से’, ‘हासिल’, और ‘पान सिंह तोमर’ जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट में उनकी लेखनी का जादू साफ दिखता है। उनके डायलॉग्स इतने प्रभावी होते हैं कि वे दर्शकों के जेहन में सालों तक गूंजते रहते हैं। चाहे वह ‘पान सिंह तोमर’ का “बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत तो शहर में मिलते हैं” हो या ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का “धनबाद में कोयला और खून सस्ता है,” तिग्मांशु की लेखनी में एक अलग ही ताकत है।

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