वाराणसी, 9 अप्रैल । उत्तर प्रदेश के वाराणसी में इस साल अप्रैल माह में ही गंगा सूखने लगी है। अभी से ही रेत के टीले दिखने लगे हैं। आमतौर पर यह नजारा मई-जून में देखने को मिलता है, लेकिन इस बार अप्रैल माह में यह दृश्य नजर आ रहा है।
गंगा के जल्दी सूखने को लेकर जल संरक्षण के लिए काम करने वाले लोग काफी चिंतित हैं। उनका मानना है कि पानी कम होने से नदी का तापमान बढ़ेगा और ऑक्सीजन कम होगा, जिससे जलीय जीवों को खतरा बढ़ेगा।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मालवीय गंगा शोध केंद्र के वैज्ञानिक बी.डी. त्रिपाठी ने कहा कि गंगा में लगातार पानी कम होता जा रहा है। पानी कम होने से प्रवाह वेग कम हो रहा है, जिससे गाद तेजी से बढ़ रही है। इसी वजह से टीले बन रहे हैं। टीला बनना कोई बड़ा खतरा नहीं है, लेकिन यह इस बात का संकेत है कि नदी में पानी कम हो रहा है।
नदी में पानी कम होने से उसका तापमान बढ़ जाता है और नदी में घुले हुए ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (मांग) बढ़ जाती है। ऐसे में ऑर्गेनिक कंटेंट थोड़ा सा डालेंगे तो प्रदूषण बढ़ जाएगा।
बी.डी. त्रिपाठी ने बताया कि गंगा की गंदगी साफ करने की क्षमता भी घटती जा रही है। ऐसे में जो जलीय जीव पानी में घुलित ऑक्सीजन में सांस लेते हैं, उनके लिए खतरा हो सकता है। जहां-जहां पानी कम है, वहां उंगली से पता लग जाएगा कि तापमान बढ़ गया होगा और ऑक्सीजन कम होगा। वहां कोई जीव नजर नहीं आएगा क्योंकि उनके लिए वहां पर ऑक्सीजन लेने के लिए नहीं है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में अप्रैल की शुरुआत से गर्मी ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है। जबरदस्त धूप हो रही है। बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। पारा अभी से 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचने लगा है। कई जिलों में मंगलवार को तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार दर्ज किया गया। कई जगह लू चलने की चेतावनी दी गई है।
इस गर्मी का असर नदियों पर भी पड़ रहा है। काशी में गंगा में इसी की बानगी देखने को मिल रही है। इसे लेकर जलीय वैज्ञानिक चिंतित हैं।
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