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एसजेवीएन की तीन जलविद्युत परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के सरकार के फैसले से कानूनी लड़ाई की संभावना

Government's decision to take over three hydropower projects of SJVN likely to lead to legal battle

सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएन) राज्य सरकार द्वारा अपने द्वारा निर्मित तीन जल विद्युत परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के निर्णय के बाद एक लंबी कानूनी लड़ाई के लिए तैयार है। एसजेवीएन के निदेशक (कार्मिक) अजय शर्मा ने कहा, “सरकार द्वारा परियोजनाओं को अपने अधीन लेने के निर्णय के साथ ही किसी भी आपसी समझ की संभावना समाप्त हो गई है। अब इस मामले का फैसला अदालत में होगा।”

शनिवार को मंत्रिमंडल ने 382 मेगावाट सुन्नी, 210 मेगावाट लुहरी चरण-I और 66 मेगावाट धौलासिद्ध जलविद्युत परियोजनाओं के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी, जिन्हें राज्य की पिछली भाजपा सरकार ने एसजेवीएन को आवंटित किया था।

सरकार ने एनएचपीसी को आवंटित 500 मेगावाट की दुगर और 180 मेगावाट की बैरासुइल जलविद्युत परियोजनाओं को भी वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए नए सिरे से नियम व शर्तों पर हस्ताक्षर करने के लिए हितधारकों के बीच असफल विचार-विमर्श के बाद यह समझौता तोड़ने का निर्णय लिया।

सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार 12, 18 और 30 प्रतिशत की दर से मुफ्त बिजली हिस्सेदारी और 40 साल बाद परियोजना की वापसी की मांग कर रही है। हालांकि, एसजेवीएन जय राम ठाकुर सरकार के साथ तय शर्तों पर परियोजना को लागू करना चाहता है।

पिछली भाजपा सरकार ने एसजेवीएन को मुफ्त बिजली हिस्सेदारी में छूट दी थी, विशेष रूप से पहले 12 वर्षों में, और राज्य में निजी बिजली उत्पादकों के विपरीत, उसे 40 वर्षों के बाद परियोजनाएं वापस करने की आवश्यकता नहीं थी।

पिछली सरकार द्वारा दी गई छूट के बारे में शर्मा ने कहा कि इन छूटों के बिना परियोजनाएँ शुरू ही नहीं हो पातीं। शर्मा ने कहा, “भारत सरकार केवल उन्हीं जल विद्युत परियोजनाओं में निवेश की मंज़ूरी देती है, जहाँ टैरिफ़ 5.50 रुपये प्रति यूनिट के आसपास है। लुहरी और धौलासिद्ध में टैरिफ़ लगभग 8 से 8.50 रुपये प्रति यूनिट आ रहा था। चूँकि उस टैरिफ़ पर यह हमारे लिए व्यवहार्य नहीं था, इसलिए हमने पिछली सरकार से मुफ़्त बिजली हिस्सेदारी में छूट मांगी, जिससे टैरिफ़ 5.50 रुपये से 5.75 रुपये तक कम हो गया।”

राज्य सरकार और एसजेवीएन के बीच गतिरोध का दूसरा कारण यह है कि एसजेवीएन ने कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर किए बिना ही इन परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया। शर्मा के अनुसार, एसजेवीएन ने इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए पिछली सरकार के साथ व्यापक सहमति बनाई थी। शर्मा ने कहा, “हम 2022 में विधानसभा चुनावों से पहले आईए पर हस्ताक्षर करने के अंतिम चरण में थे। चुनावों के कारण इस पर हस्ताक्षर नहीं हो सके। सरकार बदल गई और नई सरकार ने पिछली सरकार द्वारा सहमत नियमों और शर्तों का सम्मान करने से इनकार कर दिया।”

राज्य सरकार के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए शर्मा ने कहा कि एसजेवीएन परियोजनाओं का निर्माण कार्य उसी गति से जारी रखेगा। शर्मा ने कहा, “हम कुछ दिनों के लिए भी काम बंद नहीं कर सकते क्योंकि इससे लागत बढ़ेगी और बिजली महंगी होगी।” शर्मा ने कहा, “हमने इन तीन परियोजनाओं पर लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा कर लिया है। अगर हम इन परियोजनाओं को राज्य सरकार को वापस सौंप देते हैं, तो किसी अन्य इकाई के लिए इस चरण से परियोजना को पूरा करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।”

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