शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की वरिष्ठ नेता और बठिंडा की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने आज स्कूल जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से बच्चों में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम विधेयक, 2024 पेश किया, ताकि स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रमों को अनिवार्य करके बच्चों में नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोका जा सके, नशीली दवाओं के दुरुपयोग से जुड़े जोखिमों पर प्रारंभिक शिक्षा सुनिश्चित की जा सके और भावी पीढ़ियों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नशा मुक्त वातावरण को बढ़ावा दिया जा सके।
संसद में प्रस्तुत निजी विधेयक का उद्देश्य बच्चों और युवाओं में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की बढ़ती चिंता को दूर करना है।
विधेयक पेश करते हुए हरसिमरत बादल ने कहा कि स्कूलों में निवारक शिक्षा को अनिवार्य बनाकर विधेयक का उद्देश्य छोटी उम्र से ही जागरूकता पैदा करना, बच्चों को मादक द्रव्यों के सेवन के खतरों को पहचानने, दुरुपयोग से बचने और सूचित विकल्प बनाने में सक्षम बनाना है। विधेयक में कहा गया है कि इसका उद्देश्य सभी शैक्षणिक संस्थानों में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में निवारक औषधि शिक्षा को शामिल करना है।
उन्होंने कहा कि इसमें बच्चों को नशीली दवाओं के दुरुपयोग के स्वास्थ्य, कानूनी और सामाजिक परिणामों के बारे में शिक्षित करना तथा संभावित नशीली दवाओं के दुरुपयोग के लक्षणों की पहचान करने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों को मार्गदर्शन देना शामिल होना चाहिए।
बठिंडा के सांसद ने सुझाव दिया कि केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और राज्य शिक्षा बोर्डों को स्कूलों में पाठ्येतर गतिविधि या स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम के भाग के रूप में नशीली दवाओं की रोकथाम संबंधी शिक्षा शुरू करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में आयु-उपयुक्त पाठ शामिल होने चाहिए, जिसमें पदार्थों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर ध्यान दिया जाए, साथ ही नशीली दवाओं के उपयोग से जुड़े कानूनी दंड और सामाजिक मुद्दों पर शिक्षा भी दी जाए। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में बच्चों को लचीलापन विकसित करने, सोच-समझकर निर्णय लेने और साथियों के दबाव से बचने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
बादल ने इसके साथ ही यह भी कहा कि शिक्षकों को नशीली दवाओं के दुरुपयोग से जुड़े खतरों के बारे में छात्रों को प्रभावी ढंग से बताने के साथ-साथ संभावित नशीली दवाओं के दुरुपयोग के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से एक समर्पित प्रशिक्षण कार्यक्रम भी विकसित कर सकता है, ताकि शिक्षकों को आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस किया जा सके।
बादल ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ समन्वय करके शैक्षिक सामग्री विकसित एवं वितरित करनी चाहिए तथा कार्यक्रम की प्रभावशीलता की निगरानी के लिए समय-समय पर मूल्यांकन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कार्यान्वयन की निगरानी के लिए जिला स्तर पर एक निगरानी समिति स्थापित की जानी चाहिए, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों, कानून प्रवर्तन और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभागों के सदस्य शामिल हों। इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने में विफल रहने वाले संस्थानों को जुर्माना या मान्यता रद्द करने सहित प्रशासनिक दंड का सामना करना पड़ सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि बाम, इनहेलेंट और कफ सिरप जैसे पदार्थों के दुरुपयोग को मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत निपटाया जाना चाहिए, तथा नाबालिगों से जुड़े अपराधों के लिए विशेष दंड का प्रावधान होना चाहिए।