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वाहन प्रदूषण रोकने के लिए आईआईटी-बॉम्बे ने की कठोर नीति अपनाने की मांग

IIT-Bombay demands strict policy to be adopted to stop vehicle pollution

नई दिल्ली, 24 जुलाई । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने बुधवार को एक शोध में कहा कि देश में बढ़ते शहरी वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने को लेकर वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कठोर नीतियां जरूरी हैं।

भारत में शहरी वायु प्रदूषण में मोटर वाहनों से होने वाले प्रदूषण का प्रमुख योगदान है।

सड़कों पर वाहन जितना अधिक समय बिताते हैं, उससे अधिक मात्रा में ईंधन जलता है, जिससे अधिक प्रदूषण होता है।

हालांकि सभी वाहन ज्यादा मात्रा में प्रदूषण नहीं फैलाते हैं, वहीं इसके विपरीत कुछ वाहन अधिक मात्रा में प्रदूषण छोड़ते हैं।

अध्ययन में उच्च-उत्सर्जक वाहनों की विशेषताओं को निर्धारित करने वाले कारकों की जांच की गई, जिन्हें सुपर-उत्सर्जक भी कहा जाता है।

शोध करने वाले शोधकर्ता सोहाना देबबर्मा ने कहा, ”अब तक भारत में ऐसा कोई शोध नहीं हुआ है जिसमें वास्तविक दुनिया के वाहन बेड़े में सुपर-एमिटर की हिस्सेदारी की जांच की गई हो। पिछले शोधों में अन्य देशों के डेटा के आधार पर उनकी हिस्सेदारी का अनुमान लगाया गया था। इसका उद्देश्य वास्तविक दुनिया के वाहन बेड़े से उत्सर्जन अनुमान में अनिश्चितता को कम करना था।”

शोधकर्ताओं ने बताया कि सुपर-उत्सर्जक (अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहन) वे वाहन थे जो या तो पुराने थे, या जिनका सही तरह से ध्यान नहीं रखा गया था। इसके अलावा इसमें अधिक लोड वाले वाहन भी शामिल थे।

यह बेड़े में शामिल अन्य वाहनों की तुलना में काफी अधिक मात्रा में प्रदूषण छोड़ते हैं।

आईआईटी-बॉम्बे के अध्ययन के अनुसार, हल्के-ड्यूटी वाहनों (कार, दोपहिया, तिपहिया और हल्के वाणिज्यिक माल वाहन जैसे 3,500 किलोग्राम से कम वजन वाले वाहन) के लिए, वाहनों की उम्र और इंजन का रखरखाव संभावित रूप से यह निर्धारित करता है कि वाहन ज्यादा मात्रा में प्रदूषण फैलाता है या नहीं।

भारी-ड्यूटी वाहनों (बस और ट्रक जैसे 3,500 किलोग्राम से अधिक वजन वाले वाहन) के मामले में, वाहनों की उम्र और रखरखाव के साथ-साथ ओवरलोडिंग की स्थिति के साथ अनुपातहीन रूप से उच्च प्रदूषक उत्सर्जन भी मायने रखता है।

अध्ययन के लिए, टीम ने मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर स्थित कामशेत-I सुरंग के प्रवेश और निकास पर अपने प्रदूषक-मापने वाले उपकरण स्थापित किए।

निकास उत्सर्जन (जीवाश्म ईंधन के अधूरे दहन के परिणामस्वरूप) के साथ-साथ गैर-निकास उत्सर्जन एकत्र किए गए थे।

हाई-डेफिनिशन वीडियो कैमरों और वाहन पंजीकरण संख्या डेटा (मैन्युअल रूप से एकत्र) का उपयोग कर ट्रैफिक डेटा एकत्र किया गया था।

इस शोध के लिए दो सप्ताह तक डेटा एकत्र किया गया।

शोधकर्ताओं ने सुरंग से गुजरने वाले ट्रैफिक के वीडियो निगरानी रिकॉर्ड के आधार पर मैन्युअल निरीक्षण के माध्यम से सुपर-एमिटर की पहचान की।

टीम ने कहा, “जिन वाहनों से धुएं का एक स्पष्ट गुबार निकलता था या जो ओवरलोड दिखाई देते थे, उन्हें सुपर-एमिटर के रूप में पहचाना गया। वाहनों की उम्र और उत्सर्जन प्रौद्योगिकी के प्रकार की जानकारी का उपयोग करके भी इसकी पुष्टि की गई। इसमें स्टेज (बीएस) – II, III एवं IV (2019 का अध्ययन जब बीएस VI वाहन नहीं थे) तथा ईंधन के प्रकार (पेट्रोल, डीजल एवं सीएनजी) की जानकारी का उपयोग किया।”

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