नई दिल्ली, 15 जनवरी । दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें विकलांग लोगों के खिलाफ “अपमानजनक” टिप्पणियों वाली फिल्म ‘आंख मिचौली’ पर चिंता जताई गई थी।
अदालत ने रचनात्मक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि अत्यधिक सेंसरशिप की आवश्यकता नहीं है, खासकर भारत जैसे देश में जहां पहले से ही सेंसरशिप कानून हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने कहा कि हालांकि कुछ कंटेंट को “बेवकूफाना” माना जा सकता है, लेकिन रचनात्मक स्वतंत्रता की सराहना करना और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने राज कपूर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले और न्यायमूर्ति हिदायतुल्ला के एक बयान का हवाला दिया, जिसमें सिनेमा में अश्लीलता की व्यक्तिपरक प्रकृति पर प्रकाश डाला गया था।
विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता निपुण मल्होत्रा द्वारा दायर जनहित याचिका में फिल्म में इस्तेमाल किए गए शब्दों पर आपत्ति जताई गई थी, जैसे अल्जाइमर से पीड़ित पिता के लिए “भुलक्कड़ बाप” और हकलाने वाले व्यक्ति के लिए “अटकी हुई कैसेट”।
याचिकाकर्ता ने विकलांग व्यक्तियों के सामने आने वाली कठिनाइयों पर एक जागरूकता फिल्म बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के अनुरूप ऐसे कंटेंट को प्रतिबंधित करने के लिए दिशानिर्देश देने का आग्रह किया।
इन चिंताओं के बावजूद, अदालत ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि एक बार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) किसी फिल्म को प्रमाणित कर देता है, तो न्यायिक हस्तक्षेप दुर्लभ है।