नई दिल्ली, 20 जून । बिहार के ऐतिहासिक स्थल राजगीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया। इसके साथ ही 815 साल के लंबे इंतजार के बाद नालंदा विश्वविद्यालय का केंद्र एक बार फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट आया है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आने वाले समय में नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर से शिक्षा, ज्ञान और सांस्कृतिक चेतना का वैश्विक केंद्र बनने वाला है।
साल 2014 के बाद नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ शैक्षणिक संस्थानों में बड़ा परिवर्तन आया है। जिसने शिक्षा की तस्वीर पूरी तरह से बदलकर रख दी है। जिसका नतीजा यह है कि भारत के शिक्षण संस्थानों के कैंपस अब विदेशों में भी खुल रहे हैं। 2014 के बाद आईआईएम, एम्स, आईआईटी और मेडिकल कॉलेजों की संख्या भी दोगुनी हुई है। इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं होगा कि अब भारत विश्व गुरु बनने की तैयारी कर चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में बीते 10 वर्षों में भारतीय शिक्षा व्यवस्था को एक नई ऊंचाई मिली है। इसकी पुष्टि हाल ही में जारी ‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग – 2025’ भी करती है, जिसमें देश के 46 उच्च शिक्षण संस्थानों को जगह मिली है। जबकि, आज से 10 साल पहले इसमें केवल 9 संस्थान ही शामिल थे। इसके अलावा, टाइम्स हायर एजुकेशन इम्पैक्ट रैंकिंग में भी भारत ने ऐतिहासिक उपलब्धियों को हासिल किया है। पहले इस रैंकिंग में केवल 13 भारतीय संस्थान ही शामिल थे, जिसकी संख्या अब 105 हो चुकी है। इस रैंकिंग में प्रतिनिधित्व के लिहाज से भारत पूरे विश्व में शीर्ष पर रहा है।
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि भारत में बीते एक दशक में हर हफ्ते एक विश्वविद्यालय बना है। हर दिन दो नए कॉलेज और एक नई आईटीआई की स्थापना हुई है और हर तीसरे दिन एक अटल टिंकरिंग लैब खोली गई है। इस अवधि में देश को 7 नए आईआईटी मिले हैं, जिससे इसकी संख्या 23 हो गई है। 2014 में देश में केवल 13 आईआईएम थे, आज इसकी संख्या 21 हो चुकी है। 10 वर्ष पहले की तुलना में आज एम्स की संख्या 22 हो चुकी है, यानी तीन गुना वृद्धि हुई है।
इसके अलावा, मेडिकल कॉलेजों की संख्या भी दोगुनी हो चुकी है। इतना ही नहीं आज हमारे शिक्षण संस्थानों के कैंपस विदेशों में भी खुल रहे हैं, जैसे अबू धाबी में आईआईटी दिल्ली और तंजानिया में आईआईटी मद्रास का कैंपस।
प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव के लिए ‘नई शिक्षा नीति’ को भी लागू किया, जिसके फलस्वरूप आज भारत के युवाओं के सपनों को एक नया विस्तार मिल रहा है। भारत सरकार ने ‘नई शिक्षा नीति – 2020’ का क्रियान्वयन तीन दशक से भी अधिक पुरानी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 1986’ के स्थान पर किया है।
इस नीति में 10+2 के शैक्षिक मॉडल की जगह पर 5+3+3+4 प्रणाली को स्वीकृत किया गया है। इस व्यवस्था में तकनीक और नवाचार, भाषाई बाध्यताओं के निवारण, दिव्यांग छात्रों के लिए सुगमता, आदि जैसे कई आयामों पर विशेष ध्यान दिए गए हैं, ताकि छात्रों में एक रचनात्मक और तार्किक सोच का निर्माण हो।
इस नीति के अंतर्गत स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों तक में सुधार के लिए कई प्रयास किए गए हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम श्री) के अंतर्गत 14,500 से अधिक स्कूलों की स्थापना का संकल्प, ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पीएम ई-विद्या, स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिए राष्ट्रीय पहल (निष्ठा), उत्कृष्ट पेशेवरों के लिए राष्ट्रीय मेंटरिंग मिशन (एनएमएम), सामुदायिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से स्कूलों को सक्षम बनाने के लिए ‘विद्यांजलि’ स्कूल स्वयंसेवक प्रबंधन कार्यक्रम, आदि।
इस नीति के अंतर्गत डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए देश के 95 उच्च शिक्षण संस्था 1,149 मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम चला रहे हैं। वहीं, 66 संस्थान 371 ऑनलाइन कार्यक्रमों की पेशकश कर रहे हैं। इससे 19 लाख से भी अधिक छात्रों को प्रत्यक्ष लाभ हो रहा है। यहां बहु-विषयक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 295 विश्वविद्यालय ‘स्वयं’ कार्यक्रम में अपनी भागीदारी पेश कर रहे हैं। इस कार्यक्रम के अंतर्गत आज 9 लाख से भी अधिक छात्रों को लाभ हो रहा है।
आज इन प्रयासों का एक बेहद सकारात्मक प्रभाव हमारे समाज में देखने को मिल रहा है। शिक्षा मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि आज प्राथमिक विद्यालयों में स्कूल ड्रॉपआउट रेट 1.5 है, जो 2014 में 4.7 था। वहीं, उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 2014 में यह आंकड़ा 3.1 था, जो आज 3 है और माध्यमिक विद्यालयों में यह 2014 के 14.5 के मुकाबले 12.6 है।
इसके अलावा, आज उच्च शिक्षा के नामांकन दर में भी एक उल्लेखनीय सुधार देखने के लिए मिल रहा है। एक ओर 2014-15 में जहां 3.42 करोड़ छात्रों ने उच्च शिक्षा में अपना नामांकन लिया था, वह आंकड़ा 2021-22 तक 4.33 करोड़ तक पहुंच गया, यानी लगभग 26.5% की वृद्धि। यहां महिला नामांकन में 1.57 करोड़ से 2.07 करोड़ (32%) और एससी छात्रों के नामांकन में 46.07 लाख से 66.23 लाख (44%), एसटी छात्रों के नामांकन में 16.41 लाख से 27.1 लाख (65.2%), ओबीसी छात्रों के नामांकन में 1.13 करोड़ से 1.63 करोड़ (45%), अल्पसंख्यक छात्रों के नामांकन में 21.8 लाख से 30.1 लाख (38%) की वृद्धि प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी सोच को चरितार्थ करती है।
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