तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने गुरुवार को घोषणा की कि तमिलनाडु में लौह युग की शुरुआत 5,300 साल पहले हुई थी। एक बयान में मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख ने कहा, “मैं दुनिया को बता रहा हूं कि तमिलनाडु में लोहे को गलाने की तकनीक 5,300 साल पहले विकसित की गई थी। यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु में, लगभग 3345 ईसा पूर्व में लोहे की शुरुआत हुई थी। तमिलनाडु से एकत्र किए गए नमूनों को विश्लेषण के लिए पुणे और फ्लोरिडा सहित दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रयोगशालाओं में भेजा गया था।”
सीएम स्टालिन ने बताया कि प्रयोगशालाओं के निष्कर्षों की तमिलनाडु पुरातत्व विभाग ने भी अध्ययन किया और उसे सही पाया। उन्होंने आगे घोषणा की कि इन निष्कर्षों को ‘द एंटिक्विटी ऑफ आयरन’ नामक पुस्तक में संकलित किया गया है।
इस पुस्तक में राष्ट्रीय स्तर के पुरातत्व विशेषज्ञों की राय शामिल है, जिन्होंने विश्लेषण के परिणामों की समीक्षा की।
मुख्यमंत्री ने चल रहे शोध के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “विभिन्न स्थलों से उत्खनित लौह कलाकृतियों का धातुकर्म विश्लेषण, साथ ही लौह अयस्क युक्त पुरातात्विक स्थलों पर भविष्य की खुदाई, इन खोजों को बल प्रदान करेगी। ये प्रयास इन निष्कर्षों का समर्थन करने के लिए अधिक साक्ष्य और स्पष्टता प्रदान करेंगे, और हम विश्वास के साथ ऐसे मजबूत साक्ष्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
सीएम स्टालिन ने इन खोजों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि अयस्क से लोहा निकालने की तकनीक पहली बार तमिलनाडु में वैश्विक स्तर पर पेश की गई थी।
उन्होंने कहा, “हमने वैज्ञानिक रूप से स्थापित किया है कि लोहा 5,300 साल पहले तमिल क्षेत्र में पेश किया गया था।”
सीएम स्टालिन ने कहा, “यह तमिल, तमिल लोगों, तमिलनाडु और तमिल भूमि के लिए बहुत गर्व की बात है। यह तमिलनाडु की ओर से पूरी मानव जाति के लिए एक स्मारकीय योगदान है।”
मुख्यमंत्री ने अपने लंबे समय से चले आ रहे विश्वास को दोहराया कि भारत का इतिहास तमिलनाडु के परिप्रेक्ष्य से लिखा जाना चाहिए।
उन्होंने तमिलनाडु पुरातत्व विभाग की उसके निरंतर शोध के लिए सराहना की। जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह इतिहास की समझ में महत्वपूर्ण मोड़ ला रहा है।
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