श्रीनगर, 4 सितम्बर। जमात-ए-इस्लामी संगठन ने अपनी नीतियों में एक बड़े बदलाव के तहत मंगलवार को 37 साल बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया में शामिल होते हुए एक निर्दलीय उम्मीदवार को अपना समर्थन देने की आधिकारिक घोषणा की।
जमात ने 1987 में अंतिम बार मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (एमयूएफ) के बैनर तले समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन करके विधानसभा चुनाव लड़ा था। उसके बाद से जमात ने जम्मू-कश्मीर में चुनावों का बहिष्कार किया है। इस बीच 1989 में राज्य अलगाववादी हिंसा की चपेट में आ गया था।
जमात ने आज आधिकारिक तौर पर शोपियां जिले के जैनपोरा विधानसभा क्षेत्र में एक स्वतंत्र उम्मीदवार एजाज अहमद मीर को अपना समर्थन दिया है।
जमात के वरिष्ठ सदस्य शमीम अहमद थोकर ने कुछ पत्रकारों को बताया कि संगठन ने आधिकारिक तौर पर जैनपोरा निर्वाचन क्षेत्र में स्वतंत्र उम्मीदवार एजाज अहमद मीर को समर्थन दिया है।
जमात का फैसला धार्मिक-राजनीतिक संगठन की नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है और चुनावी राजनीति में जमात के फिर से प्रवेश से कश्मीर में चुनावी राजनीति की बुनियादी गतिशीलता में बदलाव की उम्मीद है।
जमात के नेताओं ने पहले भी जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़े हैं। जमात के वरिष्ठ नेता सैयद अली गिलानी, जो बाद में कश्मीर में अलगाववाद के विचारक बन गए, ने उत्तरी कश्मीर के सोपोर विधानसभा सीट का दो बार प्रतिनिधित्व किया है।
गिलानी के कश्मीर में अलगाववाद के विचारक बनने के बाद, सोपोर भी घाटी में भारत विरोधी भावना का केंद्र बन गया।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव का अंतिम परिणाम जो भी हो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि जमात एक बहुत ही मजबूत कैडर-आधारित संगठन है।
यदि संगठन पर वर्तमान प्रतिबंध हटा दिया जाता है, और एक बार जमात सीधे विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला करती है, तो नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी पारंपरिक राजनीतिक पार्टियों को एक कठिन प्रतिद्वंद्वी का सामना करना पड़ेगा।
यह आम धारणा कि जमात ने अतीत में अलगाववाद का समर्थन किया है। लेकिन यदि गृह मंत्रालय संगठन पर से प्रतिबंध हटा देता है तो संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो जमात को चुनावी राजनीति में शामिल होने से रोक सके।
नाम न बताने की शर्त पर जमात के एक वरिष्ठ समर्थक ने हाल ही में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के उस बयान का खंडन किया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि जमात की राजनीति में विचारधारा में बदलाव इस बात से स्पष्ट है कि उन्होंने चुनावों में जमात के पूर्व सदस्यों का समर्थन करने का फैसला किया है।