N1Live Uttar Pradesh कबीरपंथी भी सीएम योगी के ‘एकता के महाकुंभ’ के संकल्प का कर रहे समर्थन
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कबीरपंथी भी सीएम योगी के ‘एकता के महाकुंभ’ के संकल्प का कर रहे समर्थन

Kabirpanthis are also supporting CM Yogi's resolution of 'Maha Kumbh of Unity'

महाकुंभ नगर, 6 फरवरी। विश्व के सबसे बड़े धार्मिक, आध्यात्मिक सम्मेलन महाकुंभ में भारत की सनातन आस्था से जुड़े हुए सभी मत, पंथ और संप्रदाय को मानने वाले प्रयाग में संगम तट पर एकत्रित होते हैं, जिनके ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की त्रिवेणी में सत्संग कर महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु जीवन के वास्तविक अमृत का पान करते हैं। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की इस त्रिवेणी में कबीर पंथ के पारख संस्थान के धर्मेंद्र दास जी संत कबीर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने महाकुंभ में आए हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘एकता के महाकुंभ’ के संकल्प का समर्थन करते हुए उनका कहना है कि समाज में समता, एकता और मानवता के मूल्यों को स्थापित करना ही संत कबीर के जीवन दर्शन का मूल है।

महाकुंभ और गंगा स्नान के बारे में बताते हुए धर्मेंद्र दास जी का कहना है कि संत कबीर ने स्वयं गंगा तट पर काशी में जीवन व्यतीत किया। वो गंगा स्नान को तन से अधिक मन को पवित्र करने वाला मानते थे। उन्होंने बताया कि कबीर ने अपनी एक साखी में गंगा जल को सबसे पावन और निर्मल मानते हुए, मानव मन को गंगा जल के समान निर्मल बनाने को ही ईश्वर प्राप्ति का सच्चा मार्ग बताया।

धर्मेंद्र दास जी ने बताया कि कबीर कहते हैं कि अगर मानव मन में जो बैर भाव, कलुष, राग-द्वेष भरा हो उसे दूर कर, मन को गंगा जल के समान पवित्र और निर्मल बना ले तो हरि यानी ईश्वर स्वयं उसकी परवाह करने लगता है।

उन्होंने बताया कि कबीर ने ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल और सच्चा मार्ग बताया है, मन को निर्मल करना, क्योंकि ईश्वर का वास हमारे मन में ही है, जब वो मन राग, द्वेष से मुक्त होता है तो मानव को स्वयं ईश्वर का साक्षात्कार हो जाता है। अन्यथा बार-बार गंगा स्नान को लेकर कबीर दास तीखा प्रहार करते हुए कहते हैं कि नहाए धोए क्या हुआ, जो मन मैल न जाए। मीन सदा जल में रहे, धोए बास न जाए।

धर्मेंद्र दास जी बताते हैं कि कबीर पाखंड का विरोध करते हैं और मन की सच्चाई पर जोर देते हुए कहते हैं कि आप कितना भी नहा लीजिए, लेकिन अगर मन का मैल दूर नहीं हुआ तो ऐसे नहाने का कोई लाभ नहीं। जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है, मगर फिर भी वो साफ नहीं होती, मछली से उसकी दुर्गंध और बदबू नहीं जाती है। गंगा स्नान कर हमें अपने मन को निर्मल बनाना चाहिए। गंगा स्नान कर हम अपने जीवन से कम से कम कोई एक दुर्व्यसन या बुराई का त्याग करें तो यही वास्तविक मोक्ष की ओर हमें ले जाएगा। ज्ञान, वैराग्य और भक्ति की त्रिवेणी में निर्मल मन से स्नान करना ही मानव जीवन का वास्तविक मोक्ष है।

महाकुंभ या प्रयागराज में कबीर दास के आगमन के बारे में बताते हुए धर्मेंद्र दास जी ने बताया कि कबीर दास जी के महाकुंभ में सम्मिलित होने का कोई प्रसंग तो नहीं मिलता पर प्रयाग के झूंसी में उनके आने के बारे में कुछ जिक्र मिलता है। उन्होंने उस काल में झूंसी में कुछ मुस्लिम संतों के पीरों की कब्र या मजार की पूजा का विरोध किया था। कबीर सभी धर्मों में व्याप्त आडंबर और पाखंड का विरोध करते थे।

उन्होंने कहा कि कबीर सभी मानवों में प्रेम, सहिष्णुता, बंधुत्व और एकता की बात करते थे। वो मानव के मानव से विभेद करने वाले सभी सामाजिक विकारों जाति, पंथ, संप्रदायवाद का विरोध करते थे। उनका कहना था कि हमें अपना संपूर्ण जीवन मानवता के उत्थान के प्रति समर्पित कर देना चाहिए। यही सही अर्थों में ईश्वर की वंदना है।

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