July 21, 2025
National

संविधान की प्रति जेब में रखना और संवैधानिक पद पर हमला विरोधाभाषी : गजेंद्र सिंह शेखावत

Keeping a copy of the Constitution in pocket and attacking a constitutional post are contradictory: Gajendra Singh Shekhawat

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के चुनाव आयोग पर लगाए जा रहे आरोपों पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने तंज कसा है। शेखावत ने कहा कि संविधान की एक प्रति जेब में रखना और संवैधानिक पद पर हमला विरोधाभाषी है।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि संविधान की एक प्रति जेब में रखना और साथ ही संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करना और उनकी पवित्रता को कम करना बेहद विरोधाभाषी है। मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चल रहा है। यह पहली बार नहीं है, बल्कि देश में चौथी बार ऐसा हो रहा है, ऐसे में इस तरह की अनुचित टिप्पणी करना उनकी अपनी विश्वसनीयता को ही कम करता है।

संसद के आगामी मानसून सत्र पर शेखावत ने कहा कि मेरा मानना है कि देश के सामने कई महत्वपूर्ण और प्रासंगिक मुद्दे हैं, जिन पर खुली चर्चा और संवाद होना चाहिए। संसद संवाद का प्‍लेटफार्म है। मुझे पूरी उम्मीद है कि इसका इस्तेमाल रचनात्मक विचार-विमर्श के लिए किया जाएगा, न कि इसे व्यवधान या अराजकता का मंच बनाया जाएगा।

आपातकाल पर शेखावत ने कहा कि जब देश के संविधान की हत्या की गई थी, तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने पद की चाहत में देश के सभी मूल स्‍तंभों को ध्‍वस्‍त कर आपातकाल लागू किया था। आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का हनन किया गया था। आंदोलन का नेतृत्व करने वाले जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के बाद, प्रभाष जोशी ने सशक्त और विचारोत्तेजक लेख लिखे, जिन्होंने देश को जागृत किया और लोकतंत्र की बहाली के लिए लोगों को एकजुट किया था।

प्रभाष जोशी स्मारक व्याख्यान ‘इमरजेंसी के 50 साल: अनुभव, अध्ययन और सबक’ विषय पर आयोजित किया गया था। इस दौरान मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और विशिष्ट अतिथि मध्य प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल मौजूद रहे।

इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रभाष जोशी जन्म जयंती के मौके पर आज हम उनको याद करते हैं। मुझे छात्र राजनीति के दौरान उनसे दो बार मिलने का मौका मिला। उनके विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, जो मेरे जीवन के लिए अमूल्य था। आपातकाल को लेकर जब ‘संविधान हत्या’ का शब्द चुना गया तो पहले इस पर काफी विचार किया गया। यह शब्द बहुत कठोर था, लेकिन बहुत विचार-विमर्श के बाद इसे चुना गया।

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