लखनऊ, 8 मई । बेमौसम बारिश से हो रही क्षति की भरपाई के लिए किसान मौजूदा नमी का लाभ लेते हुए ढैंचे की फसल ले सकते हैं। इसका लाभ उन्हें रबी की आगामी फसलों में बढ़ी हुई उपज के रूप में मिलेगा। कृषि विभाग भी किसानों को मंडलीय खरीफ गोष्ठियों में इस बाबत लगातार जागरूक कर रहा है। विभाग के बीज विक्रय केंद्रों पर 50 फीसदी अनुदान पर इसका बीज भी उपलब्ध है।
उल्लेखनीय है कि ढैंचे की हरी खाद भूमि के लिए संजीवनी जैसी है। पिछले दो दशकों के दौरान किसान हरी खाद (ढैंचा, सनई, उड़द एवं मूंग) की उपयोगिता को लेकर जागरूक हुए हैं। लिहाजा इनके बीजों की मांग भी बढ़ी है। प्राकृतिक एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिबद्ध योगी सरकार भी भूमि में कार्बनिक तत्वों को बढ़ाने के लिए हरी खाद को प्रोत्साहित कर रही है। इन सबमें हरी खाद के लिहाज से सबसे उपयोगी ढैंचा ही है। यही वजह है कि सरकार खरीफ के सीजन में प्रदेश के किसानों को 50 फीसद अनुदान पर ढैंचा बीज उपलब्ध कराती है।
खरीफ सीजन 2025-2026 में सरकार ने इसकी कीमत 11,685 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित की है। किसानों को कृषि विभाग के बीज विक्रय केंद्र से यह अनुदान पर मिलेगा।
मालूम हो कि खरीफ सीजन 2023-2024 में इसकी कीमत 6,300 रुपए प्रति क्विंटल थी। किसानों को इस पर 50 फीसदी अनुदान देय था। उस समय कृषि विभाग बीज के विक्रय केंद्र से किसानों को पूरे दाम देकर बीज खरीदना पड़ता था। अनुदान की रकम डीबीटी के जरिए बाद में किसान को भेजी जाती थी। इससे किसानों को होने वाली दिक्कतों के मद्देनजर सरकार ने पिछले साल इस व्यवस्था में बदलाव किया। कीमत पर देय अनुदान पर ही बीज बेचा गया। कीमत थी 9,000 रुपए प्रति क्विंटल। किसानों को यह 4,500 रुपए की दर से पड़ी थी।
जिस भूमि में ढैंचा का हरी खाद के रूप में प्रयोग होता है, उसमें अगली फसल (धान, आलू, सरसों एवं गेहूं आदि) की उपज में 20 से 30 फीसद तक वृद्धि हो सकती है। ऐसा हरी खाद से मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण, जैविक पदार्थों की वृद्धि और उर्वरता में सुधार के कारण होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसके नाते भूमि की उर्वरता के साथ भूमि की जलधारणा, वायुसंचरण और लाभकारी जीवाणुओं में वृद्धि होती है।
उल्लेखनीय है कि सनई एवं ढैंचा जैसी फसलों की जड़ों में ऐसे जीवाणु होते हैं, जो हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में स्थिर कर देते हैं। इसका लाभ अगली फसल को मिलता है। कार्बनिक तत्व मिट्टी की आत्मा होते हैं। भूमि में ऑर्गेनिक रूप से इसे बढ़ाने का सबसे आसान एवं असरदार तरीका हरी खाद है।
कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता खुद में सभी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है। साथ ही यह रासायनिक खादों के लिए भी उत्प्रेरक का काम कर उसकी क्षमता को बढ़ाती है। अगली फसल में खर-पतवारों का प्रकोप भी कम हो जाता है। लगातार फसल चक्र में इसे स्थान देने से क्रमशः भूमि की भौतिक संरचना बदल जाती है।
इफको के मुख्य क्षेत्र प्रबंधक डॉ. डीके सिंह के अनुसार अगर हरी खाद के लिए सनई, ढैंचा बोया गया है तो फसल की पलटाई बोआई के लगभग 6-8 हफ्ते बाद फूल आने से पहले कर लें। इसके बाद खेत में पानी लगा दें। फसल का ठीक तरीके से और जल्दी डीकंपोजिशन (सड़न) हो, इसके लिए फसल पलटने के बाद और सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव भी कर सकते हैं। फसल के अवशेष करीब 3-4 हफ्ते में सड़ जाते हैं। इसके बाद अगली फसल की बोआई करें। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए सनई उपयुक्त होती है। एक हेक्टेयर में 80-100 किग्रा बीज लगता है। ढैंचा की बोआई कम या अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। प्रति हेक्टेयर खेत में 60-80 किग्रा बीज लगता है।
सिंचाई की सुविधा होने पर खाली खेत में अप्रैल से जून के बीच कभी भी इसकी बोआई की जा सकती है। सनई, ढैंचा, मूंग, उड़द आदि हरी खाद के कारगर विकल्प हैं। उपलब्धता व जरूरत के अनुसार इनमें से किसी का भी चयन कर सकते हैं। इनमें से ढैंचा एवं सनई हरी खाद के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त हैं। मूंग एवं उड़द की बोआई से हरी खाद के साथ प्रोटीन से भरपूर दलहन की अतिरिक्त फसल भी संबंधित किसान को मिल जाती है। अलबत्ता इनके लिए खुद का सिंचाई का संसाधन होना जरूरी है। प्रति हेक्टेयर 15-20 किग्रा बीज की जरूरत होती है।