February 21, 2025
Punjab

सांसद सतनाम सिंह संधू ने संसद में उठाया भारत की विविध भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों के संरक्षण का मुद्दा

सांसद (राज्यसभा) सतनाम सिंह संधू ने आज संसद में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी भारत की विविध भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों को संरक्षित करने का मुद्दा उठाया। सांसद ने संसद के चल रहे बजट सत्र के दौरान यह मुद्दा उठाया। 

संधू ने कहा, “भारत एक ऐसा देश था जहाँ अलग-अलग क्षेत्रों के लोग 120 से ज़्यादा अलग-अलग भाषाएँ और 270 मातृभाषाएँ बोलते थे। इसके अलावा, 19,500 क्षेत्रीय बोलियाँ थीं जिनका लोग संचार के लिए इस्तेमाल करते थे।” लेकिन हिंदी, पंजाबी, तमिल, बंगाली जैसी प्रमुख भारतीय भाषाओं के मानकीकरण के कारण आज ज़्यादातर क्षेत्रीय बोलियाँ और मातृभाषाएँ विलुप्त होने के ख़तरे का सामना कर रही हैं।”

पंजाब की क्षेत्रीय भाषाओं की विरासत का उदाहरण देते हुए सांसद संधू ने कहा, “पंजाब में कभी 28 अलग-अलग क्षेत्रीय बोलियाँ थीं, जिन्हें अलग-अलग समुदाय बोलते थे, लेकिन आज पंजाब में प्रचलित क्षेत्रीय बोलियाँ घटकर सिर्फ़ 4 रह गई हैं।” शेष क्षेत्रीय बोलियाँ हैं माझी, मालवई, दोआबी और पुआधी। ये क्षेत्रीय बोलियाँ क्षेत्रीय विरासत और संस्कृति का अच्छा प्रतिबिंब थीं। इसलिए समय की मांग है कि सरकारी प्रयासों से क्षेत्रीय बोलियों के संरक्षण के लिए काम किया जाए, अन्यथा “हम अपनी भाषाई विरासत खो देंगे, जो इन भाषाओं में लिखे गए साहित्य के रूप में है।”

सांसद संधू ने सरकार से मांग की कि भारतीय भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों का शब्दकोष प्रकाशित करने, भारतीय क्षेत्रीय बोलियों और विलुप्त होने के खतरे में पड़ी बोलियों में लिखे साहित्य का डिजिटलीकरण करने पर काम शुरू किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि प्राथमिक शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग के प्रावधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

सांसद सतनाम सिंह संधू ने नई शिक्षा नीति में भारत की भाषाई विरासत के महत्व को पहचानने और क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है कि STEM विषयों और तकनीकी विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 

शिक्षा के शिक्षण में क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं को पढ़ाने की प्रथा को प्राथमिकता दी गई है, जिससे छात्रों को बेहतर सीखने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि भाषाई विरासत संरक्षित है, क्योंकि छात्रों को उस भाषा की अवधारणाओं से अवगत कराया जाता है। वे जिस चीज़ से परिचित हैं उसे आसानी से समझ सकते हैं।

सांसद संधू ने सिंगापुर और फिलीपींस जैसे देशों में प्रचलित शिक्षा मॉडल का उदाहरण दिया, जहां मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को अनिवार्य बनाने से विद्यार्थी समुदाय की सीखने की शक्ति और क्षमता बढ़ाने में सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा, इस मॉडल ने बौद्धिक विकलांग बच्चों को पढ़ाने में भी अनुकरणीय परिणाम दिखाए हैं।

अपने भाषण की शुरुआत सांसद संधू ने नई शिक्षा नीति के क्रांतिकारी और परिवर्तनकारी प्रभाव को स्वीकार करते हुए की, जो कम से कम कक्षा 5 तक और बेहतर होगा कि कक्षा 8 तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाए रखे। 

उन्होंने स्थानीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए नीति की सराहना की, विशेष रूप से STEM शिक्षा में, तथा कहा कि 10 राज्यों में 19 संस्थानों ने पहले ही क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम शुरू कर दिए हैं, जिसे उन्होंने एक सकारात्मक कदम बताया।

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