पराली जलाने के मुद्दे पर बोलते हुए कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि पराली के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित किया जाना चाहिए और इसके विभिन्न संभावित उपयोगों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए।
हुड्डा ने शनिवार को कहा, “पराली के लिए एमएसपी तय होनी चाहिए। सवाल यह है कि छोटे किसान पराली का क्या करेंगे? किसानों से फसल न खरीदना गलत है। इसका समाधान निकालना होगा। पराली के बिजली उत्पादन समेत कई अन्य उपयोग हैं। इसका प्रभावी उपयोग होना चाहिए।”
इससे पहले शनिवार को पर्यावरणविद् विमलेंदु झा ने बताया कि उत्तर भारत में बढ़ते प्रदूषण का एक प्रमुख कारण पराली जलाना है।
एएनआई से बात करते हुए झा ने कहा, “उत्तर भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने का एक कारण पराली जलाना भी है। इसके अलावा, दिल्ली को अभी पंजाब से आने वाली हवाओं का सामना करना है। यहां प्रदूषण के स्थानीय स्रोत धूल और वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन हैं। राज्य और केंद्र सरकार दोनों को समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है।”
हालांकि, झा ने इस बात पर भी जोर दिया कि दिल्ली में प्रदूषण का प्राथमिक कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं और धूल है।
उन्होंने बताया, “सड़क किनारे की धूल 30% प्रदूषण का कारण बनती है, तथा सार्वजनिक वाहन 30% प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होते हैं। पराली जलाना केवल 25-30 दिनों तक ही चलता है। शेष वर्ष में स्थानीय कारक ही प्रदूषण के लिए मुख्य कारण होते हैं।”
16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों को तलब कर स्पष्टीकरण मांगा था कि उनके राज्यों में पराली जलाने के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
पंजाब और हरियाणा के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल की तुलना में पिछले सप्ताह पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे दिल्ली में सर्दी के आगमन के साथ ही चिंता बढ़ गई है।
दिल्ली में पराली जलाना एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि सर्दियों के मौसम में प्रदूषक फंस जाते हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है और घना धुआँ छा जाता है। पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से प्रदूषण काफी बढ़ जाता है, जिससे निवासियों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा होता है।