हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में कार्यरत वकीलों ने गुरुवार को शिमला में अधिवक्ता अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित विरोध मार्च उच्च न्यायालय से शुरू हुआ और राजभवन में समाप्त हुआ। कानूनी बिरादरी ने कानून में प्रस्तावित बदलावों पर कड़ी आपत्ति जताई और तर्क दिया कि इससे कानूनी पेशे की स्वतंत्रता का हनन होगा और देश भर के वकीलों के अधिकारों का हनन होगा।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्रवण डोगरा ने संशोधनों का विरोध करते हुए कहा कि प्रस्तावित परिवर्तनों के पीछे की मंशा ही संदिग्ध है।
डोगरा ने कहा, “सरकार का तर्क है कि विधेयक अभी प्रस्ताव के चरण में है और इसका अंतिम स्वरूप बाद में तय किया जाएगा। लेकिन हम अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए इसके अंतिम रूप तक इंतजार करने से इनकार करते हैं। हमारे पेशे की सच्चाई को बदलने का विचार ही बुनियादी रूप से गलत है। आपके इरादे नेक नहीं हैं। आपने अलग-अलग समय पर विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे कठोर कानून लाने का प्रयास किया है और हर बार उन क्षेत्रों ने उनका विरोध किया है। अब यह बोझ कानूनी पेशे पर डाल दिया गया है। इस अधिनियम को बदलने की अचानक क्या जरूरत है?”
उन्होंने आरोप लगाया, “यह छोटे-मोटे संशोधनों के बारे में नहीं है; यह कानूनी पेशे की स्वतंत्रता पर हमला है। जब फरवरी में विधेयक पेश किया गया था, तो इसका व्यापक विरोध हुआ था। जबकि हमें बताया गया था कि केवल सुझाव एकत्र किए जा रहे हैं, यह केवल दिखावा है। वे औपचारिक रूप से आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी करेंगे, कानून बनाएंगे, और हम अदालत में इसके खिलाफ़ लड़ेंगे। हमारी स्वतंत्रता खतरे में है। अगर हम अपनी स्वतंत्रता खो देते हैं, तो हम उन लोगों के हितों की रक्षा कैसे कर सकते हैं जिनका हम प्रतिनिधित्व करते हैं?” उन्होंने कहा।
डोगरा के अनुसार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है, जिससे अस्पष्टता की गुंजाइश बनी हुई है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पीयूष वर्मा ने विरोध मार्च आयोजित करने के अधिवक्ताओं के सामूहिक निर्णय पर प्रकाश डाला।