चंडीगढ़, 6 जुलाई राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान परीक्षा बोर्ड (एनबीईएमएस) के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी की बात यह है कि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने युवा छात्रों के लिए हानिकारक मनमानी, तर्कहीन और भेदभावपूर्ण प्रथाओं के लिए इसे और अन्य शैक्षणिक संस्थानों को फटकार लगाई है।
न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने एनबीईएमएस पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है, जिसे याचिकाकर्ता को अदा किया जाना है, जिसकी एनबीईएमएस प्रशिक्षु के रूप में उम्मीदवारी स्व-मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत न करने के आधार पर रद्द कर दी गई थी।
आदेश को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि मामले में एनबीईएमएस के रुख से यह स्पष्ट हो गया है कि बोर्ड ने पहली बार याचिकाकर्ता और अन्य चयनित उम्मीदवारों से 8 फरवरी को स्व-मूल्यांकन रिपोर्ट मांगी, जबकि प्रवेश प्रक्रिया और उम्मीदवारों की ज्वाइनिंग 31 दिसंबर, 2023 तक पूरी हो चुकी थी।
बेंच ने पाया कि एनबीईएमएस द्वारा जारी सूचना बुलेटिन में उल्लिखित पात्रता मानदंड में स्व-मूल्यांकन रिपोर्ट का उल्लेख नहीं किया गया था। पिछले साल दिसंबर में सभी दस्तावेजों के सत्यापन के साथ प्रवेश प्रक्रिया पूरी करने के बाद पात्रता मानदंड में बाद में किया गया बदलाव “बिना योग्यता या अधिकार के” था।
पीठ ने जोर देकर कहा कि राज्य की कार्रवाई मनमानी नहीं होनी चाहिए, बल्कि तर्कसंगत, गैर-भेदभावपूर्ण और प्रासंगिक सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए। राज्य को बाहरी या मनमाने विचारों से निर्देशित नहीं होना चाहिए क्योंकि यह समानता से इनकार करने के बराबर होगा।
पीठ ने कहा कि तर्कसंगतता और विवेकशीलता का सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता और गैर-मनमानी का कानूनी और तार्किक रूप से एक अनिवार्य तत्व है। हर कार्रवाई को चिह्नित करना आवश्यक है, चाहे वह कानून के अधिकार के तहत हो या कानून बनाए बिना कार्यकारी शक्ति के प्रयोग में हो।
इस प्रकार, राज्य या उसके संगठन प्रवेश विवरणिका में दिए गए दिशा-निर्देशों और शर्तों से विचलित नहीं हो सकते हैं और सार्वजनिक नियुक्तियां करते समय, किसी तीसरे पक्ष के साथ संविदात्मक प्रकृति का संबंध बनाते समय या अन्यथा, या अपने संस्थानों द्वारा प्रवेश की प्रक्रिया में मनमाने ढंग से कार्य नहीं कर सकते हैं।