पंजाब मंत्रिमंडल ने मंगलवार को एक संस्था द्वारा संचालित नशा मुक्ति केन्द्रों की संख्या को पांच तक सीमित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। मुख्यमंत्री भगवंत मान की अध्यक्षता में हुई बैठक में पंजाब पदार्थ उपयोग विकार उपचार और परामर्श एवं पुनर्वास केंद्र नियम, 2025 को मंजूरी दी गई।
वर्तमान में, राज्य में 36 सरकारी और 177 निजी नशामुक्ति केंद्र हैं। आँकड़ों के अनुसार, इनमें से 117 केंद्र 10 व्यापारियों द्वारा संचालित किए जा रहे थे। इनमें से तीन व्यापारियों की गुजरात और मेरठ में ब्यूप्रेनॉर्फिन और नालैक्सोन सॉल्ट बनाने की फैक्ट्रियाँ हैं, जो नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए नशेड़ियों को दी जाती हैं।
अमृतसर का एक व्यवसायी (अब दिवंगत) 21 केंद्र चला रहा था, जबकि बरनाला के एक व्यवसायी को 22 केंद्र आवंटित किए गए थे, जिन्हें सतर्कता ब्यूरो द्वारा उसकी गिरफ्तारी के बाद सील कर दिया गया था। खन्ना का एक व्यवसायी 12 केंद्र चला रहा था, जबकि पठानकोट का एक व्यवसायी 11 केंद्र चला रहा था। दो अन्य व्यवसायी सात-सात केंद्र चला रहे हैं, जबकि लुधियाना का एक व्यक्ति छह केंद्र चला रहा है। दो व्यक्ति पाँच-पाँच केंद्र चला रहे हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में सतर्कता ब्यूरो ने मुख्य सचिव के.ए.पी. सिन्हा को पत्र लिखकर आशंका व्यक्त की थी कि इन केन्द्रों के संचालक खुले बाजार में ऊंची कीमतों पर ब्यूप्रेनॉर्फिन बेच रहे हैं।
इन केन्द्रों पर फर्जी नशेड़ियों का पंजीकरण कर बुप्रेनॉर्फिन गोलियों का वितरण 40 रुपये प्रति गोली दिखाने का आरोप था, जबकि वास्तव में ये खुले बाजार में 300 रुपये प्रति गोली के हिसाब से बेची जा रही थीं। टैबलेट बनाने वालों को प्रति टैबलेट मात्र 3 रुपये की लागत आ रही थी।
मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि पांच से अधिक केंद्र चलाने वालों को लाइसेंस रद्द करने के नोटिस भेजे जाएंगे। एक सूत्र ने बताया, “जहाँ मरीज़ों की संख्या ज़्यादा होगी, वहाँ मरीज़ों को दूसरे केंद्रों में स्थानांतरित करने के लिए छह महीने की मोहलत दी जाएगी।” उन्होंने आगे बताया कि निरीक्षण व्यवस्था में सुधार किया जाएगा और केंद्रों पर बायोमेट्रिक उपस्थिति अनिवार्य की जाएगी।
स्टाम्प शुल्क युक्तिकरण के कारण 250 करोड़ रुपये का नुकसान कैबिनेट ने भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 (पंजाब) और पंजीकरण शुल्क नियमों में संशोधन करके दृष्टिबंधक और समतामूलक बंधक के उपकरणों पर स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क को युक्तिसंगत बनाने को भी मंजूरी दे दी। इस कदम से प्रति वर्ष 250 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।

