July 5, 2025
National

सावन विशेष: भस्म, चंद्रमा और गंगा… तो महादेव के गले में विराजित नागदेव, जानें इसके पीछे की कथा

Sawan Special: Ashes, Moon and Ganga… so Nagdev sits around Mahadev’s neck, know the story behind it

विश्व के नाथ को समर्पित सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू होने वाला है। महादेव के साथ ही उनके भक्तों के लिए भी यह महीना बेहद मायने रखता है। शिवालयों में लगी लंबी कतारें ‘बोल बम’ और ‘हर हर महादेव’ की गूंज चहुंओर सुनाई देगी। भोलेनाथ का स्वरूप निराला है। उनका रूप जितना रहस्यमय है, उतना ही आकर्षक भी है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि उनके शरीर पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटा में गंगा और गले में नागदेव क्यों विराजमान रहते हैं?

शरीर पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटा में गंगा और गले में नागदेव—हर भक्त के मन में जिज्ञासा जगाता है। पौराणिक ग्रंथों में इन सवालों का सरल अंदाज में जवाब मिलता है और भोलेनाथ के स्वरूप और श्रृंगार के बारे में भी विस्तार से जानकारी मिलती है।

महादेव को ‘भस्मभूषित’ भी कहा जाता है, क्योंकि वह अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। शिव पुराण के अनुसार, भोलेनाथ को भस्म बेहद प्रिय है। ये वैराग्य और नश्वरता का प्रतीक है। यह दिखाता है कि यह संसार क्षणभंगुर है और आत्मा ही शाश्वत है। शिव यह संदेश देते हैं कि सांसारिक मोह को त्यागकर आत्मिक शांति की ओर बढ़ना चाहिए। इतना ही नहीं, भस्म में औषधीय गुण भी माने जाते हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने क्रोध में आकर खुद को अग्नि के हवाले कर दिया था, उस वक्त महादेव ने उनका शव लेकर धरती से आकाश तक हर जगह भ्रमण किया। विष्णु जी से उनकी यह दशा देखी नहीं गई और उन्होंने माता सती के शव को छूकर भस्म में बदल दिया था। अपने हाथों में भस्म देखकर शिव जी और परेशान हो गए और उनकी याद में वो राख अपने शरीर पर मल ली।

धार्मिक ग्रंथों में यह भी उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर वास करते थे और वहां बहुत ठंड होती थी। ऐसे में खुद को ठंड से बचाने के लिए वह शरीर पर भस्म लगाते थे।

‘भस्मभूषित’ के साथ ही शिव को ‘चंद्रशेखर’ भी कहते हैं, क्योंकि उनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है। भागवत पुराण के अनुसार, जब चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों (नक्षत्रों) से विवाह किया, लेकिन केवल रोहिणी को प्राथमिकता दी, तो दक्ष ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दे दिया था। इसके बाद चंद्रमा ने शिव की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर रहने का वरदान दिया।

महादेव की जटाओं में गंगा का वास है, इसलिए उन्हें ‘गंगाधर’ कहा जाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार, जब पवित्रता और मुक्ति की दात्री गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तो उनकी प्रचंड धारा को संभालने के लिए शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया था।

औढरदानी को ‘नागेंद्रहार’ भी कहते हैं, क्योंकि उनके गले में नागराज वासुकी विराजते हैं अर्थात गले में नाग रूपी हार को धारण किए हुए हैं। शिव पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन में वासुकी ने रस्सी बनकर शिव के प्रति अपनी भक्ति दिखाई थी। प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपने गले में स्थान दिया और नागलोक का राजा बनाया।

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