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सिरसा-फतेहाबाद के छात्रों ने पीएचडी के अवसरों के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की

Sirsa-Fatehabad students petition High Court for PhD opportunities

हरियाणा के ग्रामीण जिलों सिरसा और फतेहाबाद के छात्रों, खासकर युवतियों का उच्च शिक्षा हासिल करने का संघर्ष पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय पहुँच गया है। उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय (सीडीएलयू), सिरसा को नोटिस जारी कर पूछा है कि उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) पीएचडी विनियम, 2022 को लागू क्यों नहीं किया है। अदालत ने 16 दिसंबर तक जवाब मांगा है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि यूजीसी नियमों के क्रियान्वयन में देरी के कारण सैकड़ों छात्र, विशेषकर महिलाएं, अपने ही जिलों में पीएचडी अध्ययन करने के अवसर से वंचित हो रही हैं।

यूजीसी के 2022 के नियमों के अनुसार, संबद्ध कॉलेजों के नियमित शिक्षक जिनके पास पीएचडी की डिग्री हो और जिनके पर्याप्त शोध प्रकाशन हों, उन्हें पीएचडी पर्यवेक्षक के रूप में मान्यता दी जा सकती है। हालाँकि, सीडीएलयू ने इन मानदंडों को नहीं अपनाया है और कॉलेज के शिक्षकों को पर्यवेक्षक की मान्यता देने से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता उत्कर्ष श्योराण ने कहा कि विश्वविद्यालय के 29 विभागों में से वर्तमान में केवल 16 ही पीएचडी सीटें प्रदान करते हैं। इनमें से दो विभागों में भारतीय छात्रों के लिए एक भी सीट उपलब्ध नहीं है। संकाय की कमी और यूजीसी के नियमों का पालन न करने के कारण, पीएचडी सीटों की कुल संख्या घटकर आधी से भी कम रह गई है।

श्योराण ने कहा कि यह मुद्दा नियमों से कहीं आगे बढ़कर युवाओं के भविष्य और हरियाणा के ग्रामीण इलाकों की बेटियों के सपनों का है। उन्होंने कहा, “जब दूसरे राज्य विश्वविद्यालयों ने यूजीसी के नियमों को लागू कर दिया है, तो सिरसा के छात्र क्यों पीछे रहें?” उन्होंने आगे कहा कि संविधान सभी के लिए शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करता है।

याचिकाकर्ता के वकील, सनोवर कस्वां ने कहा कि दूरदराज के गांवों से आए छात्र, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी, बस एक ही चीज़ चाहते थे – आगे बढ़ने और अपनी पहचान बनाने का मौका। जवाब में, सीडीएलयू के कुलपति प्रोफेसर विजय कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में निर्धारित नियमों का पालन कर रहा है। उन्होंने बताया, “इस बार केवल स्थायी प्रोफेसरों को ही पीएचडी स्कॉलर्स की देखरेख करने की अनुमति दी जा रही है, संविदा सहायक प्रोफेसरों को नहीं।”

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय ने संबद्ध कॉलेजों से रिपोर्ट माँगी है ताकि यह पता लगाया जा सके कि शोध की देखरेख करने के इच्छुक शिक्षकों के पास पर्याप्त सुविधाएँ हैं या नहीं। उन्होंने कहा, “एक तीन सदस्यीय समिति इन रिपोर्टों की जाँच करेगी और उसके अनुसार निर्णय लेगी।” उन्होंने आगे बताया कि पीएचडी प्रवेश जनवरी में फिर से शुरू होंगे।

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