सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों की पेंशन को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से रिटायर्ड जजों के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के आदेश दिए हैं। सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने यह फैसला सुनाया है।
सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने अपने फैसले में कहा, “चाहे उनकी प्रारंभिक नियुक्ति का स्रोत कोई भी हो, चाहे वह जिला न्यायपालिका से हो या वकीलों में से हो, उन्हें प्रति वर्ष न्यूनतम 13.65 लाख रुपए पेंशन दी जानी चाहिए।”
सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा कि हम मानते हैं कि एडिशनल जजों के परिवार के सदस्यों को भी वे सभी लाभ मिलेंगे, जो हाई कोर्ट के जजों के परिवारों को मिलते हैं। सरकार हाई कोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश को 15 लाख प्रति वर्ष की पूरी पेंशन देगी। साथ ही हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज और एडिशनल जजों को 13.6 लाख प्रति वर्ष की पूरी पेंशन देगी।
उन्होंने आगे कहा, “जज चाहे वकील से बनाए गए हों या जिला न्यायपालिका से हाई कोर्ट आए हों, उन्हें पूरी पेंशन मिलेगी। पारिवारिक पेंशन और विधवा लाभ न्यायाधीशों के परिवार और एडिशनल जजों के परिवार दोनों को समान देना होगा।”
चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने फैसले में कहा कि केंद्र सभी न्यायाधीशों के लिए वन रैंक, वन पेंशन के सिद्धांत का पालन करेगा, चाहे वे किसी भी उच्च न्यायालय में कार्यरत हों।
बता दें कि जस्टिस बीआर गवई हाल ही में भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बने हैं। सीजेआई बनने के बाद उन्होंने हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन इस पद पर आसीन रहे थे। जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे।
उच्चतम न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत की दुनिया में कदम रखा। वर्ष 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वतंत्र वकालत की, और इसके बाद मुख्य रूप से नागपुर पीठ के समक्ष विभिन्न मामलों की पैरवी करते रहे।
Leave feedback about this