न्ययॉर्क, 1कोविड-19 के टी-सेल टीकों पर अनुसंधान कर रहे एक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक पाया है कि मौजूदा उपलब्ध टीकों की तुलना में ये टीके ज्यादा लंबे समय तक प्रभावशाली होते हैं और वायरस के भविष्य में संभावित वेरिएंट पर भी असरदार साबित हो सकते हैं। इस समय कोरोना के जो टीके उपलब्ध हैं वे सार्स-कोव-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर हमला करते हैं। वायरस में म्यूटेशन होने पर ये कम असरदार रह जाते हैं।
पेनसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी ने ईवैक्सीन बायोटेक कंपनी के साथ मिलकर इसकी बजाय टी-सेल पर फोकस करते हुए एक अध्ययन किया। यह पहला अनुसंधान है जिसने एआई द्वारा बनाए गए टीकों का वायरस के लाइव चैलेंज मॉडल में परीक्षण किया।
अनुसंधानकर्ताओं ने चूहों पर किए गए इस परीक्षण में उन्हें वायरस का भारी डोज दे दिया। जिन चूहों को टी-सेल आधारित टीके लगाए गए थे उनमें 87.5 प्रतिशत बच गए जबकि जिन्हें ये टीके नहीं लगे थे उनमें से एक ही बच पाया।
फ्रंटीअर्स इन इम्यूनोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि टीका लगाने वाले जो चूहे बच गए वे सभी 14 दिन के अंदर संक्रमण से मुक्त हो गए।
पेन स्टेट में पशु विज्ञान और बायोमेडिकल साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर गिरीश किरीमंजेश्वरी ने कहा, हमारी जानकारी के अनुसार इस अध्ययन में पहली बार एआई द्वारा डिजाइन किए गए टी-सेल टीकों के कोविड-19 पर प्रभाव को दिखाया गया है।
उन्होंने कहा, चूहों में कोविड-19 के गंभीर मामलों में बचाव करने में हमारा टीका बेहद असरदार रहा। इसे इंसानों पर परीक्षण के लिए आसानी से तैयार किया जा सकता है।
इस अध्ययन से मौसमी और भविष्य में संभावित इंफ्लुएंजा जैसी बीमारियों के लिए टी-सेल टीके के त्वरित डिजाइन का रास्ता साफ होता है।
किरीमंजेश्वरी के अनुसार, सार्स-कोव-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव से म्यूटेशन हो सकता है जिससे वायरस के नए वेरिएंट बनते हैं।
उन्होंने कहा, इसका मतलब यह है कि वैक्सिीन निर्माताओं को हर बार एनए वेरिएंट के लिए नए टीके बनाने होंगे।
वहीं, टी-सेल वैक्सीन का फायदा यह है कि इससे बचने के लिए वायरस को कई बार म्यूटेशन से गुजरना होगा।
किरीमंजेश्वर ने कहा, दूसरा फायदा यह है कि टी-सेल आधारित टीकों से मिली रोग प्रतिरोधक क्षमता आम तौर पर ज्यादा लंबे समय तक टिकती है।