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तीन नए आपराधिक कानून आने से सजा की दर में होगा इजाफा : अश्विनी उपाध्याय

The punishment rate will increase with the introduction of three new criminal laws: Ashwini Upadhyay

नई दिल्ली, 1 जुलाई । एक जुलाई यानी आज से देश में भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड), दंड प्रक्रिया संहिता (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट) की जगह तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) लागू हो गए हैं।

आईएएनएस ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अश्विनी उपाध्याय से इस बारे में बात की। सवाल : देशभर में तीन नये आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गए हैं। आप इसे किस तरीके से देखते हैं।

जवाब : आज बहुत ही ऐतिहासिक दिन है। जो पुराने कानून थे, वह आज खत्म हो गए। आज से हमारा नया भारतीय कानून लागू हो गया है, जो पुराना कानून था उसका नाम था ‘इंडियन पेनल कोड’… उसमें इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया गया था। इसमें लिखा है ‘भारतीय न्याय संहिता’… पुराने वाले कानून का नाम था ‘इंडियन एविडेंस एक्ट’, उसमें भी इंडिया लिखा हुआ था। नए वाले में लिखा है ‘भारतीय साक्ष्य संहिता’… पुराना वाला जो कानून था उसमें व्हाट्सएप चैटिंग एविडेंस नहीं था, उसमें ईमेल का कोई एविडेंस नहीं था, उसमें फोन पर बात करने का कोई एविडेंस नहीं था, कॉल रिकॉर्ड कोई एविडेंस नहीं था…नए भारतीय साक्ष्य संहिता में वो सब एविडेंस माना जाएगा।

इसमें एफआईआर कितने दिन में करनी है, इसका टाइम फिक्स हो चुका है। आप दिल्ली में बैठे-बैठे कोलकाता में, बंगाल में एफआईआर कर सकते हैं। आपको बंगाल जाने की जरूरत नहीं है, आप घर बैठे-बैठे ऑनलाइन कर सकते हैं। एफआईआर की टाइमिंग फिक्स हो चुकी है।

जांच करने की टाइमिंग फिक्स हो चुकी है, चार्जशीट फाइल करने की टाइमिंग फिक्स हो चुकी है। मुकदमे की सुनवाई की टाइमिंग फिक्स हो चुकी है और सबसे बड़ी बात तो यह है मुकदमा जब सुनवाई पूरी हो जाएगी… उसके जजमेंट देने की भी टाइमिंग फिक्स हो चुकी है। मुझे लगता है कि ग्रैजुअली हम जस्टिस विदिन ईयर की तरफ बढ़ रहे हैं। आने वाले समय में बदलाव हो जाएंगे, सभी मुकदमों का फैसला 1 साल में होना शुरू हो जाएगा। बहुत लोगों को लाभ मिलेगा।

5 करोड़ मुकदमों की वजह से 5 करोड़ परिवार टेंशन में हैं। 5 करोड़ परिवार का मतलब एक परिवार में 6 आदमी मानिए… 30 करोड़ लोग टेंशन में हैं। ये जब तीन नए कानून आएंगे, तो लोगों को जल्दी न्याय मिलेगा, लोगों को परेशानी है तारीख पर तारीख से… वह भी कम होगी।

सवाल : कहा जा रहा है कि इस नए आपराधिक कानून में धाराएं पहले के मुकाबले कम होंगी। जबकि एविडेंस एक्ट में 3 धाराएं बढ़ाई गई हैं।

जवाब: जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, पता नहीं वह किस आधार पर विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वालों के लिए पार्लियामेंट लगातार चल ही रही है। उनको प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर बताना चाहिए कि उनके पास कौन सा नया मॉडल है। विपक्ष का काम केवल मीडिया में क्रिटिसाइज करना नहीं है। अगर विपक्ष को लगता है वर्तमान कानून से भी अच्छा कानून हो सकता है तो उनको प्रस्ताव पेश करना चाहिए, उनको प्राइवेट नंबर बिल पेश करना चाहिए।

कांग्रेस के पास भारत के बड़े दिग्गज वकीलों की फौज है। कांग्रेस या इंडिया अलांयस के पास इन कानूनों में अगर कोई सुधार करनी है तो उन्हें प्रस्ताव पेश करना चाहिए। लेकिन मेरा ये मानना है कि 1860 का पेनल कोड, 1872 का एविडेंस एक्ट बहुत खराब था। उसकी वजह से लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा था। इन तीन कानूनों के आने के बाद लोगों को जल्दी न्याय मिलेगा।”

सवाल : कहा जा रहा है कि इस नए आपराधिक कानून से सजा की दर बढ़ेगी। इलेक्ट्रानिक सबूतों पर जोर देने से अब पहले की अपेक्षा ज्यादा अपराधियों को सजा मिल सकेगी।

उत्तर : अभी तक कई राज्यों में जो सजा की दर है, वो 10 प्रतिशत है… यानी 100 मुकदमे दर्ज होते हैं, तो केवल सिर्फ 10 लोगों को सजा होती है और 90 लोग सबूत के अभाव में बरी हो जाते हैं। सबूत के अभाव में क्यों बरी हो जाते हैं क्योंकि 1872 का जो एविडेंस एक्ट था, उसमें लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को एविडेंस माना ही नहीं जाता था।

1872 में बने कानून के वक्त कोई व्हाट्सएप नहीं होता था, कोई मोबाइल फोन नहीं होता था, चैटिंग नहीं होती थी, टेलीग्राम नहीं होता था, सोशल मीडिया नहीं होती थी। लेकिन आज की डेट में हाई टेक क्राइम हो रहा है और खासतौर पर जो मनी क्राइम है, जिसे पैसा कमाने के लिए लोग क्राइम करते हैं, चाहे साइबर क्राइम हो, एक्सटॉर्शन हो, अवैध हथियारों का काम हो या ड्रग्स स्मगलिंग का.. वह बहुत हाईटेक तरीके से होते हैं… पुराने वाले कानून में ऐसे मामलों के अपराधी सबूत के अभाव में बरी हो जाते थे। कई बार तो आतंकवादी सबूत के अभाव में बरी हो जाते थे। अलगाववादी, जेहादी यहां तक के नक्सली भी सबूत के अभाव में बड़ी हो जाते थे। वर्तमान कानून में उसको टैकल किया हुआ है। हमें लगता है कि जो सजा की रेट है वह बहुत जल्दी डबल हो जाएगी।

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