N1Live National झारखंड के बाबाधाम में उमड़ रहा श्रद्धालुओं का सैलाब, 16 दिनों में 27.50 लाख कांवरियों ने किया जलार्पण
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झारखंड के बाबाधाम में उमड़ रहा श्रद्धालुओं का सैलाब, 16 दिनों में 27.50 लाख कांवरियों ने किया जलार्पण

There is a flood of devotees in Jharkhand's Babadham, 27.50 lakh Kanwariyas offered water in 16 days.

देवघर, 8 अगस्त । झारखंड के देवघर स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वश्रेष्ठ बाबाधाम में 22 जुलाई से चल रहे ऐतिहासिक श्रावणी मेले में श्रद्धालुओं और कांवरियों का सैलाब उमड़ रहा है।

बीते 16 दिनों में 27 लाख 49 हजार 495 कांवरियों ने बाबाधाम स्थित मनोकामना ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया है। इनमें करीब 3 लाख बाल कांवरिया भी शामिल हैं।

देवघर के उपायुक्त विशाल सागर ने बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि ज्योतिर्लिंग पर जलार्पण के लिए गर्भगृह के अंदर और बाहर विशाल अरघा लगाए गए हैं। 6 अगस्त तक गर्भगृह में स्थित अरघा के माध्यम से 17 लाख 45 हजार 396 और बाहरी अरघा से 9 लाख 36 हजार 755 श्रद्धालुओं ने बाबा का जलार्पण किया है। इसके अलावा शीघ्र दर्शन व्यवस्था के तहत 67 हजार 344 श्रद्धालुओं ने जल चढ़ाया है।

उपायुक्त ने बताया कि सोमवार को श्रद्धालुओं और कांवरियों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। बीते सोमवार को जलार्पण के लिए श्रद्धालुओं की लगभग 10 किलोमीटर लंबी कतार लगी थी। मेले के दौरान मंदिर को विभिन्न स्रोतों से अब तक 2 करोड़ 88 लाख 26 हजार रुपए की आमदनी हुई है।

मेले में क्राउड मैनेजमेंट के लिए आठ हजार से ज्यादा पुलिसकर्मियों की तैनाती है। जिला प्रशासन ने मेला क्षेत्र में 32 सूचना सह सहायता केंद्र स्थापित किए हैं। इसके अलावा 36 स्वास्थ्य केंद्र बनाए गए हैं, जहां 24 घंटे श्रद्धालुओं को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बाबाधाम में भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक कामना महादेव प्रतिष्ठापित हैं। सावन के महीने में बिहार के सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेकर 108 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर, प्रतिदिन औसतन डेढ़ लाख से ज्यादा कांवरिए जलार्पण के लिए बाबाधाम पहुंचते हैं।

झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के अलावा नेपाल, भूटान जैसे दूसरे देशों से भी भक्त आते हैं। यह एशिया का सबसे लंबा धार्मिक मेला माना जाता है।

श्रावण महीने में परंपरा के अनुसार, सुबह तीन बजे मंदिर का पट खुलने के बाद पारंपरिक कांचा जल पूजा और सरदारी पूजा होती है। इसके बाद मंदिर का पट रात 10 बजे बंद होने तक अरघा से जलार्पण का सिलसिला जारी रहता है।

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