N1Live National ‘एक फोटो का तलबगार हूं मैं, कुछ और मांगूं तो गुनहगार हूं मैं’ इंदिरा गांधी को यह शब्द कहकर वापस आने पर मजबूर कर दिया था इस शख्स ने
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‘एक फोटो का तलबगार हूं मैं, कुछ और मांगूं तो गुनहगार हूं मैं’ इंदिरा गांधी को यह शब्द कहकर वापस आने पर मजबूर कर दिया था इस शख्स ने

This person forced Indira Gandhi to come back by saying 'I am a demander of one photo, if I ask for anything else I am a criminal'

नई दिल्ली, 26 अगस्त । आज का जमाना अलग है अब सड़कों पर फर्राटा भरती कारों और बाइकों की लंबी तादाद आपको दिख जाएगी। लेकिन, एक समय ऐसा भी था कि घर में साइकिल होना भी शान की बात मानी जाती थी। घर में रेडियो, साइकिल हाथों में घड़ी यह सब कुछ तब स्टेटस सिंबल माना जाता था। कितना कुछ अलग था तब और अब। ऐसे में भारत में साइकिल को आम लोगों के घर तक पहुंचाने में अगर किसी ने अहम भूमिका निभाई तो वह थे ओम प्रकाश मुंजाल उर्फ ओपी मुंजाल जिनको ‘भारत के साइकिल मैन’के नाम से जाना जाता है।

हीरो साइकिल्स का नाम तो आपने सुना ही होगा। यही वह साइकिल निर्माता कंपनी थी जिसकी नींव ‘भारत के साइकिल मैन’ ओम प्रकाश मुंजाल ने रखी थी। इसी कंपनी ने आगे चलकर जापान की होंडा कंपनी से हाथ मिलाया हालांकि इस हीरो मोटोकॉर्प के चेयरमैन उनके भाई बृजमोहन लाल मुंजाल थे लेकिन मुंजाल परिवार ने ही लोगों के घरों तक हीरो-होंडा की मोटरसाइकिल किफायती दाम में पहुंचाया। साइकिल क्रांति से मोटरसाइकिल की क्रांति तक हर कोई इस मुंजाल परिवार को जानता था। लेकिन, इस सबसे अलग ओम प्रकाश मुंजाल की एक और पहचान थी। बिजनेस के क्षेत्र से अलग यारों-दोस्तों की महफिल हो या कोई कार्यक्रम उर्दू शायरी और कविताएं तो मानो हर वक्त उनकी जुबां पर ही रहती थी। उन्हें मौका मिला नहीं कि वो महफिल में अपने आप को ऐसे पेश करते की सामने वाला यह सोचता रह जाता कि एक बिजनेसमैन इतना शायराना कैसे हो सकता है?

सामने वाला शख्स कोई भी हो ओम प्रकाश मुंजाल अपनी शेरो-शायरी और कविताओं से उन्हें अपना दीवाना बना लेते थे। 1980 के दशक में एक बार साइकिल इंडस्ट्री की समस्या को लेकर कुछ कारोबारी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने गए थे साथ में ओपी मुंजाल भी थे। इस मुलाकात के दौरान इंदिरा गांधी ने सभी कारोबारी को अपने मेमोरेंडम अपने पीए को देने को कहा। इतना कहकर इंदिरा गांधी जाने लगीं फिर क्या था ओपी मुंजाल ने बिना रुके कहा ‘एक फोटो का तलबगार हूं मैं, कुछ और मांगूं तो गुनहगार हूं मैं’ इंदिरा गांधी ने इतना सुना और वापस आईं सबके साथ फोटो खिंचवाई और सबकी समस्याएं भी सुनी।

पाकिस्तान में एक शादी समारोह में ओपी मुंजाल पहुंचे वहां पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी आए थे। जब मुंजाल फैमिली नवाज शरीफ से मिल रही थी तो ओपी मुंजाल ने बशीर बद्र की शायरी की चंद लाइनें कह दी। उन्होंने कहा कि ‘दुश्मनी जम के करो लेकिन गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों।’ उनकी ये लाइनें नवाज शरीफ को खूब पसंद आई और वह वाह-वाह करने को मजबूर हो गए थे।

कमालिया पाकिस्तान में एक पंजाबी हिंदू परिवार में ओपी मुंजाल का जन्म 26 अगस्त 1928 को हुआ था। आजादी से ठीक तीन साल पहले 1944 में इनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गया। वह यहां अमृतसर में रहने लगे। चार भाइयों बृजमोहन लाल मुंजाल, ओम प्रकाश मुंजाल, सत्यानंद मुंजाल और दयानंद मुंजाल ने यहां सड़कों पर साइकिल के पुर्जे बेचे और फिर फिर 1947 में देश का बंटवारा हो गया। जिसकी वजह से चारों भाई जो साइकिल के पुर्जे बनाने और बेचने का काम कर रहे थे उन्होंने अपने व्यापार लुधियाना में शिफ्ट कर लिया। इसके बाद साल आया 1956 का जब चारों भाइयों ने मिलकर साइकिल बनाने की एक फैक्ट्री डाली और इसको नाम दिया ‘हीरो’। इसके लिए सभी भाइयों ने बैंक से 50 हजार रुपए का लोन भी लिया था। भारत की यह पहली साइकिल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट थी।

एक बार उनकी फैक्ट्री में कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। फिर क्या था अपनी धुन के पक्के ओपी मुंजाल खुद साइकिल असेंबल करने के लिए उतर गए। उन्होंने कामगारों से कहा कि ‘आप चाहें तो घर जा सकते हैं। पर मैं काम करूंगा। मेरे पास ऑर्डर हैं।’

हालांकि कंपनी के कुछ कर्मचारी उनके इस काम से सहमत नहीं थे लेकिन उन्होंने समझाया कि हमारे डीलर तो मान जाएंगे कि हड़ताल के कारण माल नहीं पहुंच रहा है लेकिन उस बच्चे को कैसे समझाएं जिससे उनके माता-पिता ने वादा किया होगा कि वह उन्हें साइकिल खरीद कर देंगे। मैंने अगर बच्चों से वादा किया है तो उन्हें पूरा भी मैं करूंगा। इतना सुनना था कि सभी कामगार काम पर लौट आए और ऑर्डर पूरा करने में लग गए। हड़ताल के कारण ट्रकें नहीं चल पा रही थी तो उन्होंने साइकिलों को बसों से पहुंचाया।

ओपी मुंजाल की इसी कर्मठता ने उन्हें ‘भारत के साइकिल मैन’ के नाम से प्रसिद्धि दिलाई।

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