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त्रिभाषा नीति हस्ताक्षर अभियान : तमिलनाडु पुलिस ने भाजपा नेता तमिलिसाई सुंदरराजन को हिरासत में लिया

Three-language policy signature campaign: Tamil Nadu police detains BJP leader Tamilisai Soundararajan

वरिष्ठ भाजपा नेता तमिलिसाई सुंदरराजन को गुरुवार को एमजीआर नगर में हस्ताक्षर अभियान का नेतृत्व करते समय ग्रेटर चेन्नई पुलिस ने हिरासत में ले लिया। यह घटना पुलिस अधिकारियों और भाजपा समर्थकों के बीच तीखी नोकझोंक के बाद हुई।

यह अभियान राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत विवादास्पद तीन-भाषा नीति के लिए समर्थन जुटाने हेतु आयोजित किया गया। तमिलनाडु भाजपा इकाई ने हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की, जिसमें राज्य अध्यक्ष के. अन्नामलाई, सुंदरराजन और कई अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए।

इस पहल में जिला और मंडल अध्यक्षों की भागीदारी देखी गई, जिससे यह एक बड़े पैमाने का आंदोलन बन गया। सुंदरराजन ने तीन-भाषा नीति के लिए राज्य के विरोध पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक अतिरिक्त भाषा सीखने से छात्रों के लिए बेहतर नौकरी और शिक्षा के अवसर खुल सकते हैं।

उन्होंने पूछा, “सरकारी संस्थानों में छात्रों को दूसरी भाषा सीखने के अवसर से क्यों वंचित किया जा रहा है, जो उनके करियर की संभावनाओं को बढ़ा सकता है?”

वरिष्ठ भाजपा नेता ने आगे कहा, “निजी संस्थान पहले से ही तीन-भाषा नीति का पालन कर रहे हैं, लेकिन सरकार सरकारी स्कूलों में दो-भाषा प्रणाली लागू कर रही है।”

उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि भाजपा चाहती है कि सभी छात्रों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए एनईपी को केंद्रीय बोर्ड, राज्य बोर्ड और सरकारी स्कूल परीक्षाओं में समान रूप से लागू किया जाए।

मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार ने एनईपी 2020, विशेष रूप से इसके त्रि-भाषा फॉर्मूले का कड़ा विरोध किया है।

डीएमके ने आरोप लगाया कि यह नीति केंद्र द्वारा तमिलनाडु में हिंदी थोपने का एक प्रयास है।

पार्टी सदस्यों को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपना रुख दोहराते हुए तर्क दिया था कि संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए हिंदी का इस्तेमाल दिखावा के तौर पर किया जा रहा है।

उन्होंने दावा किया कि मैथिली, ब्रजभाषा, बुंदेलखंडी और अवधी जैसी कई उत्तर भारतीय भाषाओं को हिंदी ने पीछे छोड़ दिया है, जिससे उनका पतन हुआ है।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि एनईपी के प्रति तमिलनाडु का विरोध इस चिंता से उपजा है कि यह नीति क्षेत्रीय भाषाओं की कीमत पर संस्कृत और हिंदी को बढ़ावा देती है।

उन्होंने भाजपा शासित राज्यों पर अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में संस्कृत को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया और उदाहरण के तौर पर राजस्थान में उर्दू प्रशिक्षकों के बजाय संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति के फैसले का हवाला दिया।

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