July 15, 2025
Entertainment

‘बाल गंधर्व’ स्त्री पात्रों को निभाया लेकिन कभी अपनी कला से समझौता नहीं किया

‘Bal Gandharva’ played female characters but never compromised with his art

किसी भी रंगमंच कलाकार के जीवन में एक नाटक ऐसा जरूर होता है, जो उसकी प्रतिभा को विशेष रूप से दुनिया के सामने लाने में कारगर साबित होता है। ऐसा ही एक प्रसिद्ध नाटक था ‘मानापमान’ जिसे मराठी रंगमंच का एक ऐतिहासिक और संगीतमय नाटक माना जाता है। इस नाटक में मराठी रंगमंच के महान कलाकार रहे बाल गंधर्व के अभिनय और गायन प्रतिभा ने दर्शकों के सामने उनकी विशेष प्रतिभा का लोहा मनवाया था।

26 जून 1888 को महाराष्ट्र में जन्मे बाल गंधर्व का 15 जुलाई 1967 को निधन हुआ। चलिए उनके जीवन और उनकी कला से जुड़ी कुछ विशेष बातों को विस्तार से समझते हैं।

जानकार बताते हैं कि बाल गंधर्व का नाम “बाल” उनके बचपन की मधुर आवाज के कारण पड़ा, और “गंधर्व” उनकी गायन कला को दर्शाता है। उन्होंने अपने करियर में लगभग 25 वर्षों तक स्त्री पात्र निभाए, और उनकी प्रस्तुतियां इतनी प्रभावशाली थीं कि लोग उन्हें वास्तविक महिला समझ लेते थे।

पद्मभूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, मराठी रंगमंच के महान नायक और प्रसिद्ध गायक बाल गन्धर्व अपनी मधुर आवाज, अभिनय प्रतिभा और स्त्री पात्रों की नाटकीय प्रस्तुति के लिए जाने जाते थे। उन्होंने मराठी रंगमंच को संगीतमय नाटकों के माध्यम से नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनके द्वारा अभिनीत नाटक जैसे मानापमान, संशयकल्लोळ, सौभद्र और एकच प्याला आज भी मराठी रंगमंच के स्वर्णिम इतिहास का हिस्सा हैं।

कहा जाता है कि मराठी रंगमंच पर उस दौर में महिलाओं की भागीदारी करना आसान नहीं था। ऐसे में बाल गंधर्व ने स्त्री पात्रों को इतनी सहजता और सौंदर्य के साथ निभाया कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनकी शारीरिक बनावट, नाजुक हाव-भाव और मधुर गायन ने उन्हें इस क्षेत्र में अद्वितीय बनाया। वो एक उत्कृष्ट गायक थे, जिन्होंने मराठी नाट्य संगीत को समृद्ध किया। उनकी गायकी में शास्त्रीय संगीत का प्रभाव था, और वे अपनी प्रस्तुतियों में रागों का उपयोग बखूबी करते थे। उनके गाए कई नाट्यगीत आज भी लोकप्रिय हैं।

बाल गंधर्व ने अपने करियर में आर्थिक तंगी और सामाजिक रूढ़ियों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी अपनी कला से समझौता नहीं किया। हालांकि, सिनेमा के उदय के कारण मराठी रंगमंच को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसका असर उनकी मंडली पर भी पड़ा। फिर भी, उन्होंने अपनी कला को जीवित रखा। मराठी रंगमंच में उनके योगदान के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पद्म भूषण जो भारत का एक प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान है। यह सम्मान भी उन्हें दिया गया।

वह भले ही हमारे बीच नहीं है। लेकिन, मराठी रंगमंच में उनकी विरासत जीवित है, और उनके नाटकों और गीतों को आज भी प्रशंसक याद करते हैं।

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