July 16, 2025
Entertainment

बर्थडे स्पेशल : बिना मंच और टिकट के सीधे दिलों तक पहुंचने वाले कलाकार बादल सरकार

Birthday Special: Badal Sarkar, the artist who reaches hearts directly without a stage and ticket

हर कलाकार का एक सपना होता है कि उसकी कला लोगों तक पहुंचे, लोग उससे जुड़ें और कुछ नया सोचें। लेकिन कुछ कलाकार ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ़ मंच पर अभिनय नहीं करते, बल्कि समाज की सोच बदलते हैं। बादल सरकार ऐसे ही एक कलाकार थे। उन्होंने रंगमंच को आम लोगों के बीच ले जाकर यह दिखा दिया कि नाटक सिर्फ़ किसी हॉल या टिकट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जरिया है— लोगों से जुड़ने का, उन्हें सोचने पर मजबूर करने का और बदलाव लाने का।

बादल सरकार का जन्म 15 जुलाई 1925 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम सुधींद्र सरकार था। वह एक साधारण बंगाली परिवार से थे, लेकिन उनकी सोच हमेशा असाधारण रही। पढ़ाई में तेज होने के कारण उन्होंने बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और बाद में नगर योजनाकार के रूप में भारत, इंग्लैंड और नाइजीरिया में काम किया।

सरकारी नौकरी और विदेशों में काम करने के बाद भी उनका मन हमेशा उन्हें थिएटर की ओर खींचता रहता था। उन्होंने अपनी खुशी और सुकून उस कला में पाई जो उनके अंदर नैसर्गिक थी। कला के प्रति इस लगाव और पैशन के चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से रंगमंच को अपना जीवन बना लिया।

उनका रंगमंच अलग था। वह नाटक को सिर्फ मंच, पर्दा और लाइट से जुड़ा हुआ नहीं मानते थे। उन्होंने ऐसे नाटक लिखे और किए, जिन्हें बिना मंच, बिना वेशभूषा, बिना टिकट के गांवों और नुक्कड़ों पर दिखाया गया। लोग जमीन पर बैठते, कलाकारों के साथ जुड़ते और नाटक को महसूस करते। दर्शकों के साथ इस सीधे संवाद को उन्होंने ‘थर्ड थिएटर’ का नाम दिया।

यह थिएटर किसी हॉल की दीवारों में नहीं, बल्कि खुले मैदान में, आम जनता के बीच होता था। इसका मकसद सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सवाल उठाना, सोच जगाना और संवाद बनाना था। इसमें दर्शक सिर्फ देखने वाला नहीं, बल्कि हिस्सा लेने वाला भी होता था।

1967 में उन्होंने ‘शताब्दी’ नाम से अपना नाट्य समूह शुरू किया। उनके लिखे कई नाटक आज भी भारतीय रंगमंच की धरोहर माने जाते हैं। इनमें ‘एवं इंद्रजीत’, ‘बासी खबर”, ‘पगला घोड़ा’, ‘सगीना महतो’, ‘भोमा’, और ‘मिछिल’ जैसे नाटकों ने न केवल दर्शकों को प्रभावित किया, बल्कि समाज के गहरे मुद्दों पर भी ध्यान खींचा।

बादल सरकार को कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1971 में जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप, 1972 में पद्म श्री और 1997 में प्रदर्शन कला का सबसे बड़ा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप शामिल हैं।

13 मई 2011 को कोलकाता में उनका निधन हो गया। उनका पूरा जीवन रंगमंच के लिए समर्पित रहा।

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