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दिल्ली हाई कोर्ट ने जेएनयू की छात्रा के निष्कासन पर लगाई रोक

Delhi High Court bans expulsion of JNU student

नई दिल्ली, 10 अप्रैल । दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की एक पीएचडी छात्रा के निष्कासन आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि संस्थान की दंडात्मक कार्रवाई उसके अपने नियमों और न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने पिछले साल 8 मई को जेएनयू के मुख्य प्रॉक्टर द्वारा जारी कार्यालय आदेश के खिलाफ स्थगन आदेश जारी किया, जिसमें बर्बरता और दुर्व्यवहार सहित कदाचार के आरोपों पर कार्रवाई करते हुए अंकिता सिंह को निष्कासित कर दिया गया था।

अदालत ने सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान जेएनयू द्वारा स्थापित प्रोटोकॉल और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना करते हुए उठाए गए कदमों की प्रवृत्ति पर ध्यान दिया।

अंकिता सिंह के वकील ने दलील दी कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में उचित प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई के बिना उन्हें बर्खास्त किया गया।

याचिका की विचारणीयता के संबंध में जेएनयू के वकील द्वारा उठाई गई आपत्तियों के बावजूद, अदालत ने अगस्त 2022 के एक कार्यालय आदेश पर ध्यान दिया, जिसमें सिंह के लिए तत्काल चिकित्सा सहायता की सिफारिश की गई थी।

हालांकि, सिंह ने अपने निष्कासन से पहले ऐसी कोई सिफारिश मिलने या किसी भी अनुशासनात्मक जांच में शामिल किये जाने से इनकार किया।

सिंह के खिलाफ आरोपों में पारदर्शिता और विशिष्टता की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए, न्यायमूर्ति शंकर ने कार्यालय के आदेश को लागू करने पर रोक लगा दी और उसे तुरंत जेएनयू में फिर से प्रवेश देने का आदेश दिया, जिससे वह बिना किसी रुकावट के अपनी पढ़ाई दोबारा शुरू कर सके।

अदालत ने 9 जुलाई को आगे की सुनवाई निर्धारित की, और जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए जेएनयू को चार सप्ताह का समय दिया।

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