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बंगाल में एनआईए अधिकारियों पर हमला मामले में चार दिन बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं

No arrest in the attack on NIA officers in Bengal even after four days

कोलकाता, 10 अप्रैल। पश्चिम बंगाल में पूर्वी मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकारियों पर हमले के चार दिन बाद भी पुलिस ने अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया है।

विपक्षी दलों ने राज्य पुलिस पर गिरफ्तारी के मामले में संदेशखाली वाला रवैया अपनाने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में ईडी और सीएपीएफ कर्मियों पर हमले का मास्टरमाइंड शेख शाहजहां 55 दिनों तक फरार रहने में कामयाब रहा था।

एनआईए ने एफआईआर दर्ज कराई है। पुलिस अभी तक आरोपियों को गिरफ्तार करने में विफल रही है। इसके बाद पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं पुलिस एनआईए के अधिकारियों के खिलाफ दायर जवाबी एफआईआर पर काफी सक्रिय है।

6 अक्टूबर की सुबह एनआईए ने दो तृणमूल कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार किया। इनमें से एक मोनोब्रत जाना के परिवार के सदस्यों ने एनआईए के खिलाफ जवाबी एफआईआर दर्ज कराई। यह हमला तब हुआ जब एनआईए के अधिकारी जाना और उसके सहयोगी बलाई चरण मैती को गिरफ्तार करने के बाद भूपतिनगर से लौट रहे थे।

राज्य पुलिस ने अपने लोगों पर हमले के संबंध में जांच में शामिल होने के लिए एनआईए के दो अधिकारियों को पहले ही नोटिस भेज दिया है। दोनों को 11 अप्रैल को भूपतिनगर थाने में उपस्थित होने को कहा गया है। दोनों अधिकारियों में से एक एनआईए अधिकारियों पर हमले के मामले में शिकायतकर्ता है और दूसरा वह है जिसे मामूली चोटें आई हैं।

जिस अधिकारी को मामूली चोटें आईं, उनसे संबंधित मेडिकल रिपोर्ट भी साथ लाने को कहा गया है। यहां तक कि एनआईए के अधिकारियों को उस वाहन को भूपतिनगर थाने लाने के लिए भी कहा गया है जो हमले के दौरान क्षतिग्रस्त हो गया था।

भाजपा नेता रवीन्द्र नाथ मैती ने दावा किया कि भूपतिनगर घटना के मामले में पुलिस बिल्कुल उसी लाइन पर चल रही है जैसा कि ईडी के अधिकारियों पर संदेशखाली हमले के बाद शेख शाहजहां के मामले में किया गया था।

उन्होंने आरोप लगाया, ”भूपतिनगर में एनआईए अधिकारियों पर हमले के लिए जिम्मेदार लोग वास्तव में पुलिस की सुरक्षित शरण में हैं।”

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी के लोकसभा सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि जिला पुलिस के पास आरोपियों को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं है क्योंकि वे सभी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के करीबी सहयोगी हैं।

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