शिव के त्रिशूल पर बसी दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी काशी। शिव की वह नगरी जिसे माता पार्वती के लिए शिव ने बसाया। वह नगरी जिसके बारे में शास्त्रों में भी वर्णित है कि जो आदि काल में भी थी और युग के अंत के बाद भी रहेगी। जिसे शिव और शक्ति ने अपने निवास के लिए चुना। वह नगरी जो पाप से मुक्ति और मोक्ष प्रदान करती है। वह नगरी जहां लोग जीवन के अंतिम पल में प्राण त्यागने आने की ख्वाहिश रखते हैं। काशी जिसे ब्रह्मांड का आध्यात्मिक केंद्र भी माना जाता है।
काशी के बारे में शास्त्रों में वर्णित है कि पुराने समय में यहां मानव शरीर में नाड़ियों की संख्या के बराबर यानी 72,000 मंदिर थे। भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी और बसी काशी के बारे में कहा जाता है कि यह जमीन से लगभग 33 फुट ऊपर है। ऐसे में काशी आध्यात्मिक शुद्धि और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति के लिए जरूरी स्थान माना गया है।
काशी जिसका निर्माण स्वयं भगवान शिव ने अपने निवास के लिए किया था। काशी को लेकर मान्यता है कि जब शिव ने पर्वत राज हिमालय की बेटी पार्वती से विवाह किया तो वह कैलाश पर निवास करते और तपस्या करते थे। माता पार्वती इससे असहज थीं, क्योंकि कैलाश उन्हीं पर्वत श्रृंखलाओं का हिस्सा था, जिसके राजा उनके पिता थे। ऐसे में माता पार्वती की इच्छा को पूरी करने के लिए महादेव ने अपने निवास स्थान की खोज शुरू करवाई और यह काम देवर्षि नारद, देव शिल्पी विश्वकर्मा और वास्तुकार वास्तु पुरुष को सौंपा गया। महादेव ने इन तीनों के सामने ऐसी जगह ढूंढने की शर्त रखी जहां गंगा उत्तर वाहिनी हो, कैलाश की तरह ही वह जमीन त्रिखंड हो और साथ ही जो स्थान पवित्र एवं तपो स्थली हो। ऐसी जगह ही आज काशी है। ऐसे में काशी को इतना महत्व क्यों दिया जाता है ये तो आप समझ ही गए होंगे।
लेकिन, क्या आपको पता है कि काशी महादेव के निवास के लिए पहली पसंद नहीं थी। इससे पहले बिहार में ठीक ऐसा ही क्षेत्र चयन किया गया था। जहां महादेव की काशी को बसाया जाना था। लेकिन, केवल एक जौ भर भूमि की कमी के चलते काशी के नाथ विश्वनाथ का यह निवास स्थान नहीं बन पाया। अगर उस समय सतयुग में देवर्षि नारद, देव शिल्पी विश्वकर्मा और वास्तुकार वास्तु पुरुष को उस जगह पर जौ भर जमीन और मिल गई होती, तो कैलाश के बराबर त्रिखंड तैयार हो जाता और काशी के नाथ आज वहां विराजते।
यह जगह बिहार में है। यह कहानी बेहद रोचक है। बिहार का भागलपुर जिला जिसे सिल्क सिटी (रेशम नगरी) के नाम से जाना जाता है, इसके अंतर्गत एक छोटा सा शहर है कहलगांव। जहां मां गंगा की तेज धारा के बीच पहाड़ी पर बाबा बटेश्वर नाथ का मंदिर है, इस स्थान को बटेश्वर धाम कहा जाता है। काशी के बसने से पहले देवर्षि नारद, देव शिल्पी विश्वकर्मा और वास्तुकार वास्तु पुरुष ने इसी जगह को महादेव के निवास के लिए चुना था। लेकिन, जब इस जमीन की नपाई शुरू हुई तो यह कैलाश की भूमि से एक जौ के बराबर कम थी। अब इस जगह के बारे में आपको बता देते हैं कि यहां काशी के लिए महादेव की तरफ से रखी गई दो शर्तें पूरी होती थी। एक तो यह कि यहां देवी गंगा उत्तरवाहिनी बहे, जो था। इसके साथ यह ऋषि कोहल की तपो स्थली थी, जहां उन्होंने कठिन तपस्या की थी, ऐसे में यह स्थान तपो स्थली भी थी और पवित्र भी। लेकिन, इस सबके साथ जो महादेव की तीसरी शर्त थी कि भूखंड भी कैलाश के बराबर होना चाहिए, उसमें जौ भर के बराबर जमीन कम थी। ऐसे में ऋषि कोहल की यह तपो स्थली काशी बनते-बनते रह गई।
ये वही बटेश्वर स्थान है, जहां ऋषि वशिष्ठ ने भी घोर तप किया था, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें रघुकुल का कुल गुरु होने का वरदान दिया था। इसी कुल में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने जन्म लिया था। यहीं ऋषि वशिष्ठ ने विश्वेश्वर के रूप में महादेव की पूजा और साधना की थी, जिसकी वजह से इस जगह को बटेश्वर धाम कहा जाता है।
ये दुनिया का पहला स्थान है, जहां बाबा बटेश्वर के शिवलिंग के सामने माता पार्वती का नहीं बल्कि मां काली का मंदिर है, जो दक्षिण की तरफ विराजती हैं, इस कारण उन्हें दक्षिणेश्वरी काली कहकर पूजा जाता है। ऐसे में यह जगह देव-शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। तंत्र विद्या के लिए इस स्थान को उपयुक्त माना गया है और इसे गुप्त काशी भी कहकर पुकारा जाता है। यह स्थान गंगा और कोसी का संगम भी है। इस जगह को इसलिए पुराणों में गुप्त काशी के रूप में वर्णित किया गया है। यह ऋषि दुर्वासा की तपो स्थली भी रही है और साथ ही इस क्षेत्र को लेकर मान्यता है कि केले के पेड़ की उत्पत्ति का स्थान यही क्षेत्र है।
ऐसे में तपो स्थली, कैलाश के बराबर की जमीन और उत्तर वाहिनी गंगा का प्रवाह इन तीनों शर्तों को पूरा करने वाली काशी को महादेव के निवास स्थान के लिए चुना गया और देवों के देव महादेव ने माता पार्वती के साथ इस जगह पर निवास किया। इस तरह बिहार में बसते-बसते काशी उत्तर प्रदेश में जा बसी।
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