हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य में घटिया दवाओं के उत्पादन की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की है तथा राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों से जवाब मांगा है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने 25 अक्टूबर को “द ट्रिब्यून” में “हिमाचल प्रदेश में निर्मित 25 दवाओं के नमूने घटिया घोषित” शीर्षक से प्रकाशित समाचार रिपोर्ट पर आधारित एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर यह आदेश दिया।
इस समाचार को जनहित याचिका मानते हुए न्यायालय ने राज्य औषधि नियंत्रक सहित राज्य प्राधिकारियों को दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
खबर में बताया गया कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने हिमाचल प्रदेश में 18 दवा इकाइयों में निर्मित 11 इंजेक्टेबल दवाओं सहित 25 दवा नमूनों को घटिया घोषित किया है। ये दवाएं उन 70 दवा नमूनों में शामिल हैं जिन्हें मानक गुणवत्ता (एनएसक्यू) के अनुरूप नहीं घोषित किया गया है।
खबर में बताया गया कि ये दवाइयां बद्दी, नालागढ़, पौंटा साहिब, काला अंब, सोलन और कांगड़ा में बनाई जाती थीं। दूसरे राज्यों द्वारा जांचे गए तीन दवा के नमूने भी सूची में थे। घटिया घोषित किए गए इंजेक्शनों में ऑक्सीटोसिन, कैल्शियम ग्लूकोनेट, प्रोमेथाजिन हाइड्रोक्लोराइड, सेलोफोस 1,000, केफजोन-एस, कैसिडटाज-पी (बैक्टीरियल संक्रमण के लिए) और नूरोफेन्स 2,500 (विटामिन बी12 की कमी के इलाज के लिए) शामिल हैं।