नई दिल्ली , 13 जुलाई । ‘शेर खान शेर का शिकार नहीं करता, वैसे भी हमारे मुल्क में या तो शेर बहुत कम रह गए हैं, हमने सुना है कि हुकूमत ने भी शेर मारने की ममानियत कर दी है’ हिंदी सिनेमा के इस डॉयलॉग को सुनिए तो एक जिंदादिल बुलंद आवाज जो आपके कानों में गूंजती है और उसके साथ जो प्रतिबिंब आपकी आंखों के सामने उभरकर आता है। वह है बॉलीवुड के सबसे खतरनाक विलेन प्राण का।
रियल लाइफ में एकदम संजीदा, खुशमिजाज और सबके लिए हमेशा खड़े रहने वाले प्राण की आवाज जब सिनेमा के पर्दे पर गूंजती तो लोग कांप जाते। पर्दे पर जिस किरदार के साथ प्राण कृष्ण सिकंद अहलूवालिया नजर आते वह तहलका मचा देता।
फिल्मी पर्दे पर 1940 से लेकर 1947 तक कई फिल्मों में हीरो का किरदार निभाने वाले अभिनेता जब सपोर्टिंग रोल में आए तो भी लोगों ने उनके अभिनय को खूब सराहा। फिर बारी आई पर्दे पर विलेन के किरदार की। ऐसा लगा मानो प्राण इसी के लिए तो बने थे। आवाज में वही खलनायक वाला दम, चेहरे पर वही भय पैदा कर देने वाले सपाट भाव और फिर सामने खड़े किसी भी अभिनेता के सारे किरदारों पर इसके जरिए हावी हो जाने की कला।
12 फरवरी 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमरान में जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद अहलूवालिया जिन्हें प्यार से लोग प्राण कहते थे। आज ही के दिन 12 जुलाई 2013 को उनका निधन हो गया था। फिल्म कालिया का वह डायलॉग तो याद होगा जिसमें प्राण कहते हैं ‘हमारी जेल से संगीन से संगीन कैदी जो बाहर गया है उसने तुम्हारे उस दरबार में दुआ मांगी है तो यही दुआ मांगी है के अगर दोबारा जेल जाए तो रघुबीर सिंह की जेल में ना जाए।’ पूरा का पूरा सिनेमा हॉल इस डायलॉग के साथ तालियों और सीटियों की आवाज से गूंज उठता था।
350 से अधिक फिल्मों में खलनायक का किरदार निभाने वाले अभिनेता की कमी बॉलीवुड में आज तक पूरी नहीं हो पाई।
बात 1938 की है, जब अभिनेता की किस्मत बदली थी। लाहौर की एक पान की दुकान पर खड़े प्राण की मुलाकात स्क्रिप्ट राइटर मुहम्मद वली से हुई थी। उनकी नजर एक खास रोल के लिए एक नौजवान की ढूंढ रही थी। उन्हें प्राण का अंदाज बेहद पसंद आया और उन्होंने 1940 में बनी पंजाबी फिल्म ‘यमलाजट’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की।
देश के विभाजन से पहले लाहौर में रहकर अभिनेता ने लगभग 20 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। याद हो कि लाहौर में उनकी आखिरी फिल्म ‘बिरहन’ थी जो 1948 में रिलीज हुई थी।
बंटवारे के बाद उन्होंने उस समय के बॉम्बे (मुंबई) में कदम रखा। अपनी इस जर्नी के दौरान अभिनेता ने जीवन में काकी उतार-चढ़ाव देखे।
1948 में प्राण को बॉम्बे टॉकीज की फिल्म में काम करने का मौका मिला। उन्होंने फिल्म ‘जिद्दी’ में काम किया, जिसके लिए उन्हें पांच सौ रुपये मिले थे। इस फिल्म में फेमस एक्टर देवानंद और कामिनी कौशल ने काम किया था। इसके बाद तो प्राण के पास फिल्मों का तांता लग गया। उन्होंने बाद में ‘अपराधी’, ‘पुतली’ और ‘गृहस्थी’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेरा।
शायद उनके फैंस को याद हो वह सिगरेट के धुएं के छल्ले बनाने में भी माहिर थे। 1949 में रिलीज हुई फेमस फिल्म ‘बड़ी बहन’ में वह धुएं के छल्ले बनाते नजर आए, जिसने दर्शकों का दिल जीत लिया। प्राण का यह खास अंदाज पूरे बॉलीवुड पर छा गया।
उनके बाद तो उन्होंने अपने मशहूर डॉयलॉग्स और अपने किरदार में एक खास तरह के अंदाज से सिनेमा में अपनी जगह बनाई।
प्राण ने अपने फिल्मी करियर में लगभग 362 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। उन्होंने खानदान (1942), पिलपिली साहब (1954) और हलाकू (1956), मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960), शहीद (1965), उपकार (1967), राम और श्याम (1967), आंसू बन गए फूल (1969), पूरब और पश्चिम (1970), जॉनी मेरा नाम (1970), विक्टोरिया नंबर 203 (1972), बे-ईमान (1972), जंजीर (1973), मजबूर (1974), अमर अकबर एंथनी (1977), डॉन (1978), शराबी (1984) और दुनिया (1984) जैसी फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई।
प्राण ने अपने करियर में कई पुरस्कार और सम्मान अपने नाम किए। उन्होंने 1967, 1969 और 1972 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता और उन्हें 1997 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। उन्हें 2013 में भारत सरकार द्वारा सिनेमा कलाकारों के लिए सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया।
प्राण ने आज के ही दिन 12 जुलाई 2013 को 93 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया था।
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