N1Live Himachal रोहडू क्षेत्र में समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर
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रोहडू क्षेत्र में समुद्रतल से 1370 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर

शिमला, जिला शिमला के रोहडू क्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ माता हाटकोटी मंदिर है। यह शिमला से करीब 100 किलोमीटर की दूरी व समुद्रतल से 1,370 मीटर की ऊंचाई पर पब्बर नदी के दाहिने किनारे समतल स्थान पर स्थित है। तहसील जुब्बल कोटखाई में मां हाटेश्वरी का प्राचीन मंदिर है। हाटेश्वरी माता समस्त दुखों का निवारण करने वाली हैं। माता रोग शोक का नाश करती हैं। इसी मान्यता से लोग दरबार में पहुंचते हैं और समस्त रोगों से मुक्ति पाते हैं।
मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 700-800 वर्ष पहले हुआ था। मंदिर के साथ लगते सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी जहां पर पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए। यहां माता के मंदिर में शिल्पकला, वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों के साक्षात दर्शन होते हैं। माता हाटेश्वरी का मंदिर विशकुल्टी, राईनाला और पब्बर नदी के संगम पर सोनपुरी पहाड़ी पर स्थित है। मूलरूप से यह मंदिर शिखराकार नागर शैली में बना हुआ था, बाद में एक श्रद्धालु ने इसकी मरम्मत कर इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित किया। मंदिर के दक्षिण पश्चिम में चार छोटे शिखर शैली के मंदिर देखने को मिलते हैं। यह मुख्य अर्धनारिश्वरी मंदिर के अंग माने जाते हैं। मां हाटकोटी के मंदिर में एक गर्भगृह है, जिसमें मां की विशाल मूर्ति विराजमान है यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी की है इतनी विशाल प्रतिमा केवल हिमाचल में ही नहीं बल्कि भारत के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती।
मान्यता है कि बहुत वर्षों पहले एक ब्राह्मण परिवार में दो सगी बहनें थीं उन्होंने अल्प आयु में ही सन्या्स ले लिया और घर से भ्रमण के लिए निकल पड़ीं। उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांवगांव जाकर लोगों के दुख दर्द सुनेंगी और उसके निवारण के लिए उपाय बताएंगी। दूसरी बहन हाटकोटी गांव पहुंची जहां मंदिर स्थित है उन्होने यहां एक खेत में आसन लगाकर ईश्वरीय ध्यान किया और ध्यान करते हुए वह लुप्त हो गईं। जिस स्थान पर वह बैठी थी वहां एक पत्थर की प्रतिमा निकल पड़ी।
इस आलौकिक चमत्कार से लोगों की उस कन्या के प्रति श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने इस घटना की पूरी जानकारी तत्कालीन जुब्बल रियासत के राजा को दी। जब राजा ने इस घटना को सुना तो वह तत्काल पैदल चलकर यहां पहुंचे और इच्छा प्रकट की कि वह प्रतिमा के चरणों में सोना चढ़ाएंगे, जैसे ही सोने के लिए प्रतिमा के आगे कुछ खुदाई की तो वह दूध से भर गया। उसके उपरांत राजा ने यहां पर मंदिर बनाने का निर्णय लिया। लोगों ने उस कन्या को देवी रूप माना और तब से इसे ‘हाटेश्वरी देवी” कहा जाने लगा।

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