July 13, 2025
Entertainment

पुण्यतिथि विशेष : सिने जगत के ‘प्राण’, खलनायकी ऐसी कि पर्दे पर देखते ही लोग देते थे ‘बद्दुआ’

Special death anniversary: The ‘life’ of the film industry, such a villain that people used to curse him as soon as they saw him on screen

जब बात बॉलीवुड के सबसे खूंखार और यादगार खलनायकों की हो, तो प्राण कृष्ण सिकंद अहलूवालिया का नाम सबसे पहले आता है। प्राण, जिन्हें भारतीय सिनेमा में ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ की उपाधि मिली थी। उन्होंने अपने छह दशक लंबे करियर में 350 से अधिक फिल्मों में काम किया। साल 1940 से 1990 के दशक तक उनकी खलनायकी ने दर्शकों को डराया, तो उनके सहायक किरदारों ने दिल जीता।

प्राण एक्टिंग में इस तरह से डूब जाते थे कि लोग उनकी एक्टिंग को स्क्रीन पर देखने के बाद गालियों और बद्दुआओं की बौछार करने लगते थे। ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ लड़कियों और महिलाओं को तो पर्दे पर पसंद ही नहीं आते थे।

शनिवार 12 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है। प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को लाहौर में हुआ था और पालन पोषण दिल्ली के बल्लीमारान में एक संपन्न पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ। उनके पिता केवल कृष्ण सिकंद एक सिविल इंजीनियर और सरकारी ठेकेदार थे। प्राण ने मेरठ, देहरादून, कपूरथला और रामपुर जैसे शहरों में शिक्षा ग्रहण की।

फोटोग्राफी में रुचि रखने वाले प्राण ने लाहौर में एक फोटोग्राफर के रूप में करियर शुरू किया। साल 1938 में शिमला में रामलीला में ‘सीता’ का किरदार निभाने के बाद अभिनय की दुनिया में कदम रखा। उनकी पहली पंजाबी फिल्म ‘यमला जट’ थी, जो 1940 आई थी। फिल्म में प्राण ने खलनायक की भूमिका निभाई थी। लेकिन हिंदी सिनेमा में 1942 में आई फिल्म ‘खानदान’ से वह हीरो बन गए।

साल 1947 में विभाजन के बाद प्राण मुंबई आए और ‘जिद्दी’ से बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई। प्राण ने 1950 और 60 के दशक में खलनायकी को नया आयाम दिया। उनकी फिल्में जैसे ‘मधुमति’ (1958), ‘जिस देश में गंगा बहती है’ (1960), ‘राम और श्याम’ (1967) में उनकी दमदार मौजूदगी ने दर्शकों को हैरान कर दिया। उनकी गहरी आवाज और “बरखुरदार” जैसे संवादों ने उन्हें घर-घर मशहूर कर दिया। उनकी खलनायकी इतनी प्रभावशाली थी कि लोग अपने बच्चों का नाम ‘प्राण’ रखने से कतराते थे। प्राण ने साल 1967 में ‘उपकार’ में ‘मलंग चाचा’ का किरदार निभाकर सहायक भूमिकाओं में भी अपनी छाप छोड़ी। ‘जंजीर’ (1973), ‘डॉन’ (1978), और ‘अमर अकबर एंथनी’ (1977) जैसी फिल्मों में उनके किरदारों ने साबित किया कि वह हर भूमिका में जान डाल सकते हैं।

प्राण 1969 से 1982 तक बॉलीवुड के सबसे महंगे अभिनेताओं में शुमार हो गए। उन्होंने 1973 में ‘जंजीर’ के लिए निर्माता प्रकाश मेहरा को अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया, जिसने अमिताभ के करियर को नई उड़ान देने में अहम भूमिका निभाई। प्राण, अशोक कुमार के करीबी दोस्त थे और दोनों ने 20 से ज्यादा फिल्मों में साथ काम किया। प्राण ने 1991 में ‘लक्ष्मणरेखा’ फिल्म का निर्माण भी किया। साल 1998 में दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्होंने फिल्में कम कर दीं, लेकिन अमिताभ के कहने पर ‘तेरे मेरे सपने’ (1996) और ‘मृत्युदाता’ (1997) में काम किया। प्राण को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्होंने ‘उपकार’ (1967), ‘आंसू बन गए फूल’ (1969), और ‘बे-ईमान’ (1972) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का तीन फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। हालांकि, 1972 में ‘बे-ईमान’ के लिए पुरस्कार स्वीकार करने से उन्होंने इनकार कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि ‘पाकीजा’ के लिए गुलाम मोहम्मद को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिलना चाहिए था।

साल 1997 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड और साल 2000 में स्टारडस्ट का ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ पुरस्कार मिला। साल 2001 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। साल 2013 में उन्हें भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिला, जो उनके घर पर प्रदान किया गया।

प्राण ने 1945 में शुकला अहलूवालिया से शादी की। उनके तीन बच्चे अरविंद, सुनील, और पिंकी हैं। वह खेल प्रेमी थे। उन्होंने बांग्लादेश के शरणार्थियों और मूक-बधिरों के लिए चैरिटी शो आयोजित किए थे।

12 जुलाई 2013 को 93 वर्ष की आयु में मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनका निधन हो गया। प्राण का नाम आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जिंदा है।

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