पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने आर्थिक अपराधों को देश की वित्तीय स्थिरता और जनता के विश्वास के लिए गंभीर खतरा मानते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में अग्रिम ज़मानत की कड़ी जाँच की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि सार्वजनिक धन से जुड़ी धोखाधड़ी में गिरफ्तारी से पहले छूट देने से जाँच में बाधा आ सकती है और न्याय व्यवस्था कमज़ोर हो सकती है।
यह बात न्यायमूर्ति सुमित गोयल द्वारा 65 लाख रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में एक आरोपी की याचिका को खारिज करने के बाद कही गई। उन्होंने फैसला सुनाया कि आर्थिक अपराध, अपनी प्रकृति के कारण, व्यापक नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं और इसलिए अत्यधिक सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
इस मामले में एक एफआईआर तब दर्ज की गई जब एक बैंक ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी ने “दो संपत्तियों को गिरवी रखकर धोखाधड़ी करने के इरादे से” 65 लाख रुपये का ऋण लिया। आरोप है कि दोनों ने ज़मीन का एक टुकड़ा छुड़ाए बिना ही उसे एक करोड़ रुपये में बेच दिया।
न्यायमूर्ति गोयल ने ज़ोर देकर कहा कि मामले के मूल में लगे आरोप एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के साथ धोखाधड़ी के जघन्य कृत्य पर केंद्रित थे—एक ऐसा अपराध जिससे सीधे तौर पर बड़ी मात्रा में सार्वजनिक धन का नुकसान हुआ। अदालत ने आगे कहा कि यह कानून का एक मूलभूत सिद्धांत है कि अग्रिम ज़मानत की याचिकाओं, खासकर सार्वजनिक धन से जुड़े आर्थिक अपराधों से संबंधित याचिकाओं की, कड़ी और गहन जाँच की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति गोयल ने कहा, “आर्थिक अपराध अपनी प्रकृति से ही आपराधिक परिदृश्य में एक विलक्षण और असाधारण रूप से गंभीर स्थान रखते हैं। ये अपराध आम जनता को व्यापक नुकसान पहुँचाने और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और अखंडता को कमज़ोर करने की अपनी अंतर्निहित क्षमता के कारण विशिष्ट होते हैं।”
अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में अग्रिम जमानत की न्यायिक मंजूरी से न केवल चल रही जांच की गहन और निर्बाध प्रगति में एक बड़ी बाधा उत्पन्न होगी, बल्कि अफसोस की बात है कि इससे उन सुस्थापित कानूनी सिद्धांतों का भी सीधा अपमान होगा, जो इस तरह के गंभीर और सामाजिक प्रभाव वाले मामलों में गिरफ्तारी से पहले स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए लगातार सतर्क और प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण की वकालत करते हैं।
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