वाराणसी, 9 अगस्त । बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर अखिल भारतीय संत समिति की प्रतिक्रिया सामने आई है। समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद को चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदू समाज हाथ में चूड़ियां पहनकर नहीं बैठा है।
उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है। राहुल गांधी और अखिलेश यादव से लेकर विपक्ष का हर एक नेता फिलिस्तीन और यूक्रेन मामले पर ट्वीट कर रहा था। वो लोग आज बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर चुप क्यों हैं ? विपक्ष इस मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए है ? ठीक है बांग्लादेश में एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। चुनी हुई सरकार को सेना ने हटाकर प्रधानमंत्री शेख हसीना से इस्तीफा लिया। वहां शांति स्थापित हो।
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारत में धार्मिक असमानता का राग अलापने वाली अमेरिकी एजेंसियां, अंतर्रराष्ट्रीय ह्यूमन राइट कमीशन और संयुक्त राष्ट्र संघ बांग्लादेश में हिंदू अत्याचार पर चुप क्यों हैं ? बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने भी यह माना है कि उनके देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार हुआ है।
उन्होंने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद को चेतावनी देते हुए कहा कि भारत में बांग्लादेश जैसे हालात की धमकी देने वाले नेताओं को मैं चेतावनी दे रहा हूं कि हिंदू समाज हाथ में चूड़ियां पहनकर नहीं बैठा है। हर गोधरा का अंजाम गुजरात होगा, यह ध्यान रखिए। हर मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पनाह मांगते नजर आएंगे।
उन्होंने कहा कि सलमान खुर्शीद को यह धमकी नहीं है। लेकिन हिंदुस्तान की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ खेलने की कोशिश हुई। हम राष्ट्र की एकता, अखंडता और हिंदू हितों के साथ समझौता करने की परिस्थिति में नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि इस देश का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ है, इसलिए जो भी नेता इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। उन नेताओं को मेरी चेतावनी है। प्रशासन उन्हें गिरफ्तार करके देशद्रोह का मुकदमा चलाए। बांग्लादेश में हिंदू अत्याचार पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था मूकदर्शक क्यों हैं ?
दरअसल, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि ”बांग्लादेश जैसे हालात भारत में भी हो सकते हैं। बांग्लादेश की तरह भारत में भी हिंसक प्रदर्शन हो सकते हैं। भारत में विरोध प्रदर्शन और आगजनी होगी।” सलमान खुर्शीद ने यह बयान एक किताब के विमोचन के दौरान दिया था। किताब का शीर्षक था। ‘शिकवा-ए-हिंद: भारतीय मुसलमानों का राजनीतिक भविष्य’।