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कुचिपुड़ी में प्रयोग से नहीं हिचकिचाईं यामिनी रेड्डी, मां-पिता की विरासत को दिया पूरा सम्मान

Yamini Reddy did not hesitate to experiment in Kuchipudi, gave full respect to the legacy of her parents

यामिनी रेड्डी शास्त्रीय नृत्य कुचिपुड़ी की जानी मानी नृत्यांगना हैं। वह डॉ. राजा रेड्डी और डॉ. राधा रेड्डी की बेटी हैं। दो ऐसे नाम जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस शैली को खास मुकाम दिलाया। बचपन से ही नृत्य की दुनिया में पली-बढ़ी यामिनी ने अपनी कला में परंपरा और आधुनिकता का संतुलन बखूबी साधा है।

उन्होंने देश-विदेश में कई प्रतिष्ठित मंचों पर प्रदर्शन किया है और अपनी अनोखी अभिव्यक्ति, शारीरिक लय और भावनात्मक गहराई से दर्शकों का दिल जीता है। यामिनी रेड्डी सिर्फ एक कलाकार ही नहीं, बल्कि एक शिक्षक और प्रेरणा स्रोत भी हैं। वह नई पीढ़ी को भारतीय शास्त्रीय नृत्य की ओर आकर्षित करने और इसे वैश्विक स्तर पर फैलाने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं।

उनकी पहचान एक ऐसी नृत्यांगना के रूप में है जो न सिर्फ परंपरा का सम्मान करती हैं बल्कि नए प्रयोगों के माध्यम से कुचिपुड़ी में प्रयोग करने से भी नहीं हिचकिचाती हैं।

कुछ वर्ष पहले आईएएनएस ने एक इंटरव्यू लिया था। इसमें उन्होंने बताया, “मैंने स्टेज पर पहली प्रस्तुति 3 साल की उम्र में दी थी। माता-पिता लगातार कुचिपुड़ी का अभ्यास करते रहते थे और देशभर में दौरे पर जाते थे। मैं भी बचपन में उनके साथ जाती थी, और कई बार स्टेज पर प्रस्तुति देने की जिद भी की।”

यामिनी ने एक रोमांचक किस्सा साझा करते हुए कहा, “मेरे माता-पिता बस मुझे बस शांत करते और कहते, ‘ओह, हम तुम्हें जल्द ही मंच पर बुलाएंगे, चिंता मत करो, बस यहीं बैठो।’ तो दो-तीन बार ऐसा करने के बाद, मैं बहुत परेशान हो गई और फिर मैं मंच पर चली गई जब मेरे पिताजी नाच रहे थे। मैं लगातार मांग करती रही कि मैं परफॉर्म करूंगी। दर्शक इतने खुश हुए कि उन्होंने मुझे डांस करने दिया और यही मेरी पहली स्टेज परफॉर्मेंस थी।”

यामिनी बोलीं, “कुचिपुड़ी में प्रसंग, वाचिका अभिनय, संवाद, चरित्र-चित्रण, नाट्यम—सभी ऐसी चीजें हैं जो कहानी कहने के लिए बहुत उपयुक्त हैं, इसलिए मैंने कहानी कहने की एक शाम प्रस्तुत करने के बारे में सोचा, जहां मैं कुचिपुड़ी नृत्य की सभी अनूठी विशेषताओं का उपयोग उन सुंदर कहानियों को कहने के लिए कर सकूं जो पुरानी हैं—जैसे भागवतम् के नीतिशास्त्र और पुराण—लेकिन आज हमारे जीवन के लिए बहुत प्रासंगिक हैं।”

इसके बाद उन्होंने कुचिपुड़ी में महारत हासिल कर ली। उन्होंने अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, सिर्फ पारंपरिक नृत्य तक खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने अपने नृत्य में समकालीन विचारों और विषयों को भी शामिल किया। वह कुचिपुड़ी को सिर्फ एक प्राचीन कला के रूप में नहीं देखतीं, बल्कि एक ऐसी शैली के रूप में देखती हैं जो आज के दर्शकों से भी जुड़ सकती है।

उनकी नृत्य संरचनाएं अक्सर अनोखी होती हैं, जिनमें वह पारंपरिक कुचिपुड़ी को अन्य नृत्य शैलियों और विषयों के साथ मिलाती हैं। उनके इस अभिनव दृष्टिकोण ने उन्हें दुनियाभर में सराहा है। यामिनी ने कई देशों में अपनी प्रस्तुतियां दी हैं और दर्शकों का दिल जीता है।

कला के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान दिलाए हैं। यामिनी रेड्डी को संगीत नाटक अकादमी द्वारा बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा, उन्हें युवा रत्न अवार्ड, युवा वोकेशनल एक्सीलेंस अवार्ड, फिक्की युवा प्राप्तकर्ता पुरस्कार और देवदासी राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। ये सभी सम्मान उनकी कला की गहराई और उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।

आज यामिनी रेड्डी सिर्फ एक नर्तकी नहीं हैं, बल्कि एक शिक्षक और कोरियोग्राफर भी हैं। वह अपने माता-पिता द्वारा स्थापित कुचिपुड़ी संस्थान नाट्य तरंगिणी की हैदराबाद शाखा की डायरेक्टर भी हैं। यहां वो खुद छात्रों को प्रशिक्षण देती हैं।

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